राष्ट्रीय मुनाफाखोरी रोधी प्राधिकरण (NAA) की स्थापना केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम, 2017 की धारा 171 के तहत की गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि जीएसटी दरों में की गई कटौतियों का लाभ उपभोक्ताओं तक पहुँचे और व्यापारी इसे अपने मुनाफे में न समेट लें।

हालाँकि, 30 सितम्बर 2024 को मोदी सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर 1 अप्रैल 2025 से एनएए को लगभग समाप्त कर दिया। इसके बाद से ही यह बहस जारी है कि अब दरों में कटौती का लाभ सही मायनों में जनता तक पहुँचेगा या फिर कुछ चुनिंदा व्यापारिक समूहों तक ही सीमित रह जाएगा।

हालिया जीएसटी सुधार और उपभोक्ताओं की उम्मीदें

जीएसटी परिषद ने हाल ही में बड़े सुधारों की घोषणा की है। अब चार स्लैब (5%, 12%, 18%, 28%) को घटाकर दो स्लैब — 5% और 18% — कर दिए गए हैं, जबकि लक्ज़री और “सिन गुड्स” पर 40% तक कर लगेगा।

  • रोज़मर्रा की वस्तुएँ जैसे पैकेज्ड फूड, टूथपेस्ट, साबुन और दवाएँ अब सस्ती होने की उम्मीद है।
  • वहीं गाड़ियाँ, तंबाकू और महंगे इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जैसे उत्पाद और महंगे होंगे।

सरकार का दावा है कि इन सुधारों से महँगाई में कमी आएगी और उपभोक्ता को सीधा फायदा होगा। लेकिन सवाल यही है कि क्या कंपनियाँ व व्यापारी वाकई इन कटौतियों का लाभ कीमत घटाकर उपभोक्ताओं तक पहुँचाएँगे?

NAA की गैर-मौजूदगी और संदेह

एनएए के बंद होने के बाद अब इसकी जिम्मेदारी जीएसटी अपीलीय न्यायाधिकरण (GSTAT) और अन्य संस्थाओं पर डाल दी गई है। लेकिन कई विशेषज्ञों का मानना है कि इन संस्थाओं के पास सीधी निगरानी और त्वरित कार्रवाई की क्षमता सीमित है।

यही कारण है कि उपभोक्ताओं के बीच संदेह बना हुआ है कि कहीं कर कटौती का फायदा केवल चुनिंदा कंपनियों और कारोबारियों तक ही सीमित न रह जाए।

क्या फिर से जीवित होगा NAA?

सरकार के भीतर चर्चा है कि जीएसटी 2.0 सुधारों के लागू होने के बाद एनएए जैसी कोई अस्थायी या संशोधित व्यवस्था वापस लाई जा सकती है। यह व्यवस्था दर कटौती के प्रभावी क्रियान्वयन की निगरानी करेगी ताकि आम जनता को लाभ मिल सके।

जीएसटी दरों में कटौती और सरलीकरण निश्चित तौर पर एक राहत देने वाला कदम है, लेकिन असली कसौटी यही होगी कि इसका लाभ जनता तक पहुँचे।

अगर निगरानी तंत्र कमजोर रहा तो यह सुधार केवल कागज़ों और सरकार के दावों तक ही सीमित रह जाएगा। ऐसे में, एनएए का पुनर्जीवन या एक नए सशक्त निगरानी ढाँचे की स्थापना आवश्यक मानी जा रही है।

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