ओडिशा हाई कोर्ट ने एक बेहद सख्त रुख अपनाते हुए अवैध बुलडोज़र कार्रवाई पर राज्य सरकार को ₹10 लाख मुआवजा देने का निर्देश दिया है। अदालत ने यह भी आदेश दिया कि इस मुआवजा राशि में से ₹2 लाख संबंधित तहसीलदार के वेतन से वसूल की जाए।
यह मामला उस समय सामने आया जब जिला प्रशासन ने एक सामुदायिक केंद्र की संरचना को बलपूर्वक ध्वस्त कर दिया, जबकि अदालत ने पहले ही उस पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दे रखा था। अदालत ने इसे कार्यपालिका की शक्ति का घोर दुरुपयोग और न्यायिक आदेशों की सीधी अवहेलना करार दिया।
न्यायालय की सख्त टिप्पणी
अदालत ने कहा कि ऐसी कार्रवाइयाँ नागरिकों के जीवन, गरिमा और संपत्ति के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन हैं। अदालत ने इसे ‘न्यायिक आदेशों के विपरीत घोर गैर-जिम्मेदाराना आचरण’ बताया और अधिकारियों को कड़ी फटकार लगाई।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कार्यपालिका को कानून से ऊपर नहीं समझा जा सकता। ऐसे मामलों में व्यक्तिगत जवाबदेही तय करना आवश्यक है ताकि भविष्य में इस प्रकार की गैरकानूनी कार्यवाहियों पर अंकुश लगाया जा सके।
क्या है आदेश का सार?
- राज्य सरकार ₹10 लाख मुआवजा देगी।
- ₹2 लाख संबंधित तहसीलदार के वेतन से वसूला जाएगा।
- कार्यपालिका को नागरिक अधिकारों के उल्लंघन से बचने की सख्त चेतावनी दी गई।
- अदालत ने कहा कि यह कार्रवाई संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन है।
हाल के वर्षों में देश के कई राज्यों, विशेषकर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, और दिल्ली में ‘बुलडोज़र कार्रवाई’ प्रशासनिक हथियार के रूप में देखी गई है। सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न उच्च न्यायालयों ने पहले भी इस प्रकार की कार्यवाहियों को लेकर सरकारों को फटकार लगाई है, जहां न्यायिक आदेशों और विधिक प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया।
यह निर्णय उन मामलों की श्रृंखला में एक महत्वपूर्ण उदाहरण बन गया है, जिसमें अधिकारियों की व्यक्तिगत जिम्मेदारी निर्धारित की गई है।
ओडिशा हाई कोर्ट का यह आदेश स्पष्ट संदेश देता है कि “बुलडोज़र न्याय” के नाम पर कानून को ताक पर नहीं रखा जा सकता। कार्यपालिका को न्यायिक आदेशों का पूर्ण पालन करना होगा, अन्यथा उन्हें कानूनी और आर्थिक जिम्मेदारी भुगतनी होगी।
यह फैसला न केवल प्रभावित पक्ष को न्याय दिलाने वाला है, बल्कि यह प्रशासनिक जवाबदेही और संवैधानिक मर्यादा की पुनर्स्थापना का भी एक मजबूत उदाहरण है।