कांग्रेस की वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी ने आशा (ASHA) कार्यकर्ताओं की लंबे समय से चली आ रही मांग — उन्हें स्थायी सरकारी कर्मचारी का दर्जा दिए जाने — को राजनीतिक और सामाजिक विषय बनाने का आग्रह किया है। कांग्रेस नेताओं ने कहा है कि आशा बहनें ग्रामीण और शहरी स्वास्थ्य सेवा के “बैकबोन” यानी रीढ़ की हड्डी हैं, फिर भी उन्हें नियमित कर्मचारी के रूप में नहीं माना जाता, जिससे उन्हें वे सभी कल्याणकारी लाभ नहीं मिलते जिनके वे हकदार हैं।
कांग्रेस के आह्वान के अनुसार आशा कार्यकर्ता प्रतिदिन कई घंटे स्वास्थ्य सेवाओं में काम करती हैं, लेकिन उन्हें केवल मानदेय स्वरूप भुगतान मिलता है, जो न्यूनतम मजदूरी के मानकों से भी कम है। इसी कारण पार्टी के नेताओं का कहना है कि अब समय आ गया है कि सरकार उन्हें स्थायी कर्मचारी घोषित करे और सामाजिक सुरक्षा, पेंशन व अन्य सुविधाएं प्रदान करे।
पार्टी के कुछ सांसदों ने संसद में भी प्रश्न उठाए हैं कि क्या केंद्र सरकार आशा कार्यकर्ताओं के नियमितीकरण और उचित वेतन-अधिकार सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाएगी, लेकिन सरकार ने आशा कामकत्रियों को “स्वयंसेवक” के रूप में ही देखा है, जिससे कांग्रेस का आरोप है कि यह “गंभीर अन्याय” है।
आशा कार्यकर्ता आंदोलन और मांगें
देश के कई राज्यों में आशा कार्यकर्ता नई मानदेय राशि, बेहतर सामाजिक सुरक्षा, स्थाई कर्मचारी का दर्जा, स्वास्थ्य व दुर्घटना बीमा जैसे विषयों पर प्रदर्शन कर रहे हैं। उदाहरण के तौर पर उत्तर प्रदेश में आशा बहनें मानदेय बढ़ोतरी के लिए धरना दे रही हैं।
विभिन्न शहरों में आशा कार्यकर्ताओं ने सरकारी कर्मचारी के रूप में मान्यता देने तथा सेवा नियमावली, ईपीएफ (EPF) की सुविधा, रिटायरमेंट लाभ और समान वेतन की मांग के साथ अधिकारों के लिए आवाज़ उठाई है।
कांग्रेस नेताओं का कहना है कि आशा कामकत्रियों की भूमिका ग्रामीण स्वास्थ्य इन्फ्रास्ट्रक्चर में महत्वपूर्ण है, और यही कारण है कि पार्टी ने स्थायी कर्मचारी का दर्जा देने की मांग पर जोर दिया है, ताकि उनके सेवा के सम्मान और आर्थिक सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सके।
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