देशभर में तेजी से फैल रहे ‘डिजिटल अरेस्ट’ साइबर फ्रॉड को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए CBI को सभी मामलों की जांच अपने हाथ में लेने का निर्देश दिया है। साथ ही अदालत ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को आदेश दिया है कि वे अपने-अपने क्षेत्राधिकार में दर्ज सभी FIRs का पूरा विवरण शीघ्र कोर्ट में प्रस्तुत करें।
क्या है ‘डिजिटल अरेस्ट’ स्कैम?
देश के विभिन्न हिस्सों में हजारों लोग ऐसे साइबर अपराधों के शिकार बने हैं, जिनमें खुद को पुलिस अधिकारी, प्रवर्तन निदेशालय (ED) अधिकारी, CBI अधिकारी, या कोर्ट के कर्मचारी बताने वाले ठग पीड़ितों को फोन कर गंभीर आरोपों की झूठी धमकियाँ देते हैं।
कई मामलों में स्कैमर्स फर्जी वॉरंट, कोर्ट ऑर्डर, या वीडियो कॉल के माध्यम से पूछताछ दिखाकर पीड़ित को मानसिक रूप से दबाव में डालते हैं और फिर उनसे बड़ी रकम वसूलते हैं।
हजारों लोग ठगे गए — कोर्ट ने व्यक्त की गहरी चिंता
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस तरह के अपराधों ने
- लोगों का विश्वास,
- कानूनी व्यवस्था की छवि,
- और डिजिटल सुरक्षा
तीनों पर गंभीर असर डाला है। कोर्ट के अनुसार यह स्पष्ट है कि यह अपराध अब एक राज्य तक सीमित नहीं, बल्कि अनेक राज्यों में फैले संगठित नेटवर्कों का हिस्सा है।
केंद्रीयकृत जांच क्यों ज़रूरी?
अदालत ने माना कि अलग-अलग राज्यों द्वारा अलग-अलग स्तर पर जांच करने से
- अपराधियों का पकड़ से बाहर रहना
- और साक्ष्यों का बिखराव
जैसी समस्याएं पैदा हो रही थीं।
CBI द्वारा की जाने वाली एकीकृत और समन्वित जांच से इन नेटवर्कों की जड़ तक पहुंचने की उम्मीद जताई गई है।
आगे क्या होगा?
- सभी राज्यों को निर्देश: दर्ज FIRs के विस्तृत डेटा कोर्ट में जमा करें।
- CBI: सभी मामलों को मिलाकर संयुक्त जांच शुरू करेगी।
- कोर्ट: साइबर फ्रॉड रोकने के लिए मानक दिशानिर्देश बनाने पर भी विचार कर रहा है।
यह आदेश उन हजारों पीड़ितों के लिए राहत का संकेत है, जिन्होंने ठगी के कारण अपनी जीवन भर की बचत खो दी थी। सुप्रीम कोर्ट की इस सक्रियता से देशभर में डिजिटल फ्रॉड के खिलाफ बड़े अभियान का रास्ता खुल गया है।
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