देश में बीते दो हफ्तों में दो अलग-अलग भीषण बस हादसों में करीब 40 लोगों की जान चली गई, जिसने सड़क सुरक्षा और निजी बसों की लापरवाही पर गहरी चिंता खड़ी कर दी है। यात्रियों के लिए घर जाने की यात्रा मौत की यात्रा में बदल गई।

🔴 हादसा 1 — कर्नूल, आंध्र प्रदेश (24 अक्टूबर 2025)

हैदराबाद से बेंगलुरु जा रही एक प्राइवेट स्लीपर कोच बस शुक्रवार तड़के कर्नूल ज़िले के चिन्नेतेकुरु गांव के पास भीषण आग की चपेट में आ गई।

जानकारी के अनुसार, बस एक मोटरसाइकिल से टकराई और बाइक बस के नीचे फंस गई। टक्कर के बाद आग लग गई और चंद मिनटों में बस धधक उठी।

  • हादसे में कम से कम 20 लोगों की मौत हुई — 19 यात्री और मोटरसाइकिल सवार।
  • बस में लगभग 44 से 46 यात्री सवार थे।
  • कई यात्री सो रहे थे और जब तक जागे, बस धुएं से भर चुकी थी।
  • दरवाज़े जाम थे, और यात्रियों को खिड़कियाँ तोड़कर कूदना पड़ा।
  • जांच में सामने आया कि बस को ग़ैरक़ानूनी तरीके से स्लीपर कोच में बदला गया था, जिसमें आपातकालीन निकास, फायर अलार्म और अग्निरोधक सामग्री जैसी मूलभूत सुरक्षा सुविधाएँ नहीं थीं।

🔴 हादसा 2 — जैसलमेर, राजस्थान (14 अक्टूबर 2025)

दूसरा हादसा राजस्थान के जैसलमेर-जोधपुर मार्ग पर हुआ, जब एक यात्री बस में सफर के कुछ ही मिनटों बाद शॉर्ट सर्किट से आग लग गई।

  • इस हादसे में 20 यात्रियों की मौत हो गई।
  • बस को ग़ैरक़ानूनी रूप से एसी कोच में बदला गया था और उसमें ग़ैर-मानक वायरिंग पाई गई।
  • यात्रियों के फंस जाने से आग तेजी से फैल गई और राहत दल पहुँचने से पहले बस पूरी तरह जलकर खाक हो गई।

⚠️ आम खामियाँ — दो राज्यों में एक जैसी लापरवाही

  • बिना अनुमति बसों में इलेक्ट्रिकल मॉडिफिकेशन — इन्वर्टर, फैंसी लाइट और ग़ैर-मानक तारों का उपयोग।
  • आपातकालीन दरवाज़ों का अभाव या उनका जाम होना।
  • फायर सेफ़्टी सर्टिफ़िकेट के बिना चलती बसें।
  • ग़ैरक़ानूनी रूपांतरण — साधारण बसों को स्लीपर कोच में बदलना।

विशेषज्ञों के अनुसार, आग 10 से 15 मिनट में पूरी बस को अपनी चपेट में ले लेती है। ऐसे में यदि इमरजेंसी निकास काम न करे, तो यात्रियों के बचने की संभावना लगभग समाप्त हो जाती है।

ज़मीनी आवाज़ें

“दरवाज़े नहीं खुल रहे थे। हमने हाथों से शीशे तोड़े और कूद गए। कई लोगों की टांगें टूट गईं।” — कर्नूल हादसे का एक जीवित यात्री

“जो भी बस नियमों का उल्लंघन करती पाई जाएगी, उसे जब्त किया जाएगा।” — आंध्र प्रदेश के परिवहन मंत्री का बयान

आगे क्या होना चाहिए

  • बसों की सुरक्षा ऑडिट अनिवार्य की जाए।
  • इमरजेंसी हेमर, फायर एक्सटिंग्विशर और निकास मार्ग हर बस में अनिवार्य हों।
  • ग़ैरक़ानूनी स्लीपर बसों पर त्वरित कार्रवाई।
  • यात्रियों को यात्रा शुरू होने से पहले सुरक्षा ब्रीफिंग दी जाए।

🕯️ अंत में

दो हफ़्तों में लगभग 40 परिवारों के चिराग बुझ गए।

जो लोग अपने घर पहुँचने निकले थे, वे अब लौट नहीं पाए।

इन घटनाओं ने स्पष्ट कर दिया है कि भारत की सड़क परिवहन व्यवस्था में अभी भी सुरक्षा से ज़्यादा मुनाफ़े को प्राथमिकता दी जा रही है।

अब वक़्त आ गया है कि सरकार और परिवहन विभाग सख़्त सुरक्षा मानक लागू करें —

सुरक्षित वायरिंग, आपात निकास, और नियमित निरीक्षण के बिना अब और मौतें नहीं झेल सकता देश।

काफ़ी हुआ — अब बदलाव ज़रूरी है।

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