कर्नाटक के अलंद विधानसभा क्षेत्र में मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी के मामले में राज्य सरकार द्वारा गठित विशेष जांच टीम (SIT) ने चौंकाने वाले खुलासे किए हैं। जांच में पता चला है कि प्रत्येक मतदाता का नाम हटाने के लिए लगभग ₹80 प्रति आवेदन का भुगतान किया गया था।
SIT के अनुसार, 2022 दिसंबर से 2023 फरवरी के बीच कुल 6,018 डिलीशन आवेदन किए गए, जिनमें से 5,994 फर्जी पाए गए। ये आवेदन कालबुरगी स्थित एक प्राइवेट डेटा सेंटर से भेजे गए थे, जो चुनाव आयोग के पोर्टल का दुरुपयोग कर रहा था।
🔍 जांच के प्रमुख निष्कर्ष
- प्रत्येक फर्जी आवेदन के बदले ₹80 तक का भुगतान हुआ — कुल मिलाकर लगभग ₹4.8 लाख की अवैध लेन-देन की आशंका।
- फर्जी डिलीशन के लिए झूठे पहचानपत्र, मोबाइल नंबर और IP एड्रेस का इस्तेमाल किया गया।
- SIT ने भाजपा नेता सुभाष गुट्टेदार से जुड़े परिसरों पर छापे मारे और कई लैपटॉप, मोबाइल फोन व हार्ड डिस्क जब्त किए हैं।
- गवाहों से पूछताछ में सामने आया कि कुछ स्थानीय डेटा एंट्री ऑपरेटरों को इस कार्य के लिए पैसे दिए गए थे।
राजनीतिक पृष्ठभूमि और आरोप
कांग्रेस ने इस प्रकरण को “वोट चोरी” बताया है। पार्टी के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने कहा था कि “अलंद में सॉफ्टवेयर और मोबाइल के जरिए मतदाताओं के नाम हटाए गए, ताकि विपक्षी मतदाता वोट ही न डाल सकें।”
वहीं, भाजपा नेता सुभाष गुट्टेदार — जो अलंद के पूर्व विधायक रह चुके हैं — ने इन आरोपों को “राजनीतिक षड्यंत्र” बताया। उन्होंने कहा, “यह कांग्रेस की चुनावी हार से उपजा झूठा नैरेटिव है। हम SIT की जांच में सहयोग कर रहे हैं।”
SIT अब फॉरेंसिक विशेषज्ञों की मदद से जब्त किए गए उपकरणों की डिजिटल जांच कर रही है। टीम IP लॉग्स, भुगतान रिकॉर्ड और डेटा एंट्री टाइम-स्टैम्प की जांच कर यह पता लगाने में जुटी है कि पोर्टल पर अवैध पहुंच कैसे मिली।
राज्य के गृह विभाग के सूत्रों ने बताया कि इस मामले में आईटी अधिनियम और जनप्रतिनिधित्व कानून के तहत आपराधिक धाराएँ लगाई जा सकती हैं।
यह खुलासा चुनावी प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़ा करता है। यदि हजारों मतदाताओं के नाम जानबूझकर हटाए गए, तो यह लोकतंत्र की बुनियाद पर चोट है। विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसी घटनाएँ चुनाव आयोग की सुरक्षा व्यवस्था की सख्त समीक्षा की मांग करती हैं।
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