चुनावी महीने के बीच एक विवाद गरमाया है: राजनीतिक विश्लेषक योगेंद्र यादव ने सोमवार को आरोप लगाया कि चुनाव आयोग ने वह गाइडलाइन जिसे वह “तीन महीने से दबाए” हुए था, अंततः सार्वजनिक किया है — और वह गाइडलाइन बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि यह 2003 के “इंटेंसिव रिवीजन” (Intensive Revision) की प्रक्रिया की कई धारणाओं को सीधे चुनौती देती है।
योगेंद्र यादव का तर्क है कि आयोग का यह दावा कि वे 2003 की पुष्टि प्रक्रिया को आज के SIR (Special Intensive Revision) के ज़रिए दोहरा रहे हैं — “पूरी तरह झूठ” है। उन्होंने कहा कि जो गाइडलाइन सार्वजनिक हुई है, उसमें कई ऐसे प्रावधान हैं जो यह स्पष्ट करते हैं कि वर्तमान SIR प्रक्रिया 2003 की प्रक्रिया से मेल नहीं खाती।
पृष्ठभूमि: 2003 की “इंटेंसिव रिवीजन” और वर्तमान SIR
- 2003 की इंटेंसिव रिवीजन बिहार में चुनाव आयोग द्वारा किया गया एक विशेष व मौलिक संशोधन (revision) था, जब आनुषांगिक (summary) संशोधनों के बजाय पूरे मतदाता सूची की पुनर्समीक्षा की गई थी।
- चुनाव आयोग ने यह घोषणा 24 जून 2025 को की कि बिहार में Special Intensive Revision (SIR) की प्रक्रिया होगी, और इसके लिए 01 जुलाई 2025 को “qualifying date” (अर्हता तिथि) माना गया।
- आयोग के निर्देशों के अनुसार, 2003 की मतदाता सूची (Electoral Roll) को बेस ड्राफ्ट के रूप में उपयोग किया जाएगा — यानी जो मतदाता 2003 सूची में थे, उन्हें आमतौर पर अतिरिक्त दस्तावेज़ जमा करने की आवश्यकता नहीं होगी।
- हालांकि, अधिकांश मतदाताओं को, विशेष रूप से वो जो 2003 के बाद जुड़े थे, अपने जन्म और माता-पिता की जानकारी सहित दस्तावेज़ जमा करना होगा।
योगेंद्र यादव का तर्क — गाइडलाइन ने जो सच उघाड़ा
योगेंद्र यादव के अनुसार:
- गाइडलाइन सार्वजनिक करना — आयोग ने वह गाइडलाइन जिसे वह तीन महीने से छुपाए हुए बताया जा रहा था, अंततः जारी की है।
- विवादास्पद प्रावधान — इस गाइडलाइन में ऐसे प्रावधान हैं जो 2003 की प्रक्रिया के मूल स्वरूप को तोड़ते हैं (उदाहरण: दस्तावेजी सत्यापन, माता-पिता की जानकारी, दायित्व आदि)।
- दावा खंडन — आयोग का यह दावा कि SIR में 2003 की ही प्रक्रिया दोहराई जा रही है, योगेंद्र के अनुसार गलत है — गाइडलाइन की सामग्री दिखाती है कि SIR में बहुत बड़े बदलाव किए गए हैं, जो 2003 की प्रक्रिया के अनुरूप नहीं हैं।
तर्क-वितर्क और आलोचनाएँ
- आयोग ने यह तर्क प्रस्तुत किया है कि SIR को संविधान, कानून और पिछले प्रावधानों के अनुरूप ले जाया गया है।
- पर अनेक विश्लेषकों और विपक्षी दलों का कहना है कि SIR में जो दस्तावेज़ी बाध्यता और जिस तरह से अधिकांश मतदाताओं को सत्यापन प्रक्रिया में लाना है — वह प्रक्रिया 2003 की मौजूदा इंटेंसिव रिवीजन प्रथाओं से “मूलतः भिन्न” है। उदाहरण स्वरूप, 2003 की इंटेंसिव रिविजन में मतदाताओं/दस्तावेजों के सत्यापन में इतनी कठोरता नहीं थी।
- Economic Times एक रिपोर्ट में कहता है कि 2003 की प्रक्रिया में माता-पिता के दस्तावेज नहीं माँगे जाते थे, जबकि यह नया SIR उसमें से एक बड़ा बदलाव है।
- The Indian Express की एक रिपोर्ट में यह कहा गया है कि आयोग 2003 की प्रक्रिया को वर्तमान SIR के लिए एक “मानक” की तरह पेश कर रहा है, जबकि वास्तविक गाइडलाइन सामग्री दिखाती है कि प्रक्रिया में कई अंतर हैं।
कानूनी लड़ाई: सुप्रीम कोर्ट में मामला
- Association for Democratic Reforms (ADR) ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है, जिसमें यह तर्क दिया गया है कि SIR की प्रक्रिया विशेषाधिकार, असंबद्ध, और निर्वाचन प्रक्रिया की निष्पक्षता को प्रभावित करने वाली है।
- सुप्रीम कोर्ट ने आयोग को निर्देश दिया है कि वह SIR द्वारा हटाए गए मतदाताओं की सूची और उनके हटाए जाने का कारण सार्वजनिक करे।
- इसके अलावा, न्यायालय ने यह भी कहा है कि आयोग को यह बताना चाहिए कि 2003 की प्रक्रिया में किन दस्तावेज़ों को स्वीकार किया गया था।