देशभर में खाद्य एवं दवाओं की मिलावट से जुड़े डरावने मामले नागरिकों की सुरक्षा पर सीधा हमला हैं। पिछले एक सप्ताह में सामने आए कुछ ताज़ा घटनाक्रम इस बात की चुभती याद दिलाते हैं कि हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी कितनी असुरक्षित होती जा रही है:

🩺 खांसी की दवा बन गई ज़हर — कम से कम 16 बच्चों की मौत

मध्य प्रदेश और राजस्थान में कम-से-कम 16 बच्चे (जिनमें अधिकतर 5 वर्ष से कम आयु के थे) “Coldrif” नामक खांसी की दवा लेने के बाद अचानक गुर्दे फेल होने की समस्या से ग्रस्त हो गए, और उनकी मृत्यु हो गई। 

पुलिस ने इस मामले में हत्या का मुकदमा दर्ज किया है। 

प्रारंभिक परीक्षणों में दवाई में diethylene glycol (DEG) नामक जहरीली रासायनिक मिश्रण का स्तर लगभग 46 % पाया गया — जो कि दवा निर्माण मानकों से बहुत ऊपर है। सरकारों ने अयुक्त दवाएँ पर रोक लगाने एवं विवेचना तेज करने की माँगों के बीच इस दवाई के बैन की घोषणाएँ की हैं।

डाइएथिलीन ग्लाइकोल (DEG) एक औद्योगिक रासायनिक पदार्थ है, जो सामान्यतः दवाओं या खाद्य पदार्थों में उपयोग के लिए नहीं बनाया जाता। इसका मुख्य उपयोग निम्नलिखित औद्योगिक प्रक्रियाओं में होता है —

DEG के सामान्य उपयोग

  1. एंटीफ्रीज़ (Antifreeze) और कूलेंट्स में —
    वाहनों के रेडिएटर और औद्योगिक कूलिंग सिस्टम में जमाव रोकने के लिए।
  2. ब्रेक फ्लूइड में —
    वाहनों के ब्रेक ऑयल का हिस्सा बनाने में।
  3. प्लास्टिक, रेज़िन और पॉलिएस्टर फाइबर के निर्माण में —
    पॉलिएस्टर कपड़े, बोतलें, और अन्य सिंथेटिक उत्पाद बनाने में।
  4. सॉल्वेंट (घोलक) के रूप में —
    पेंट, इंक, और कॉस्मेटिक उत्पादों में, नियंत्रित मात्रा में (औद्योगिक ग्रेड)।

⚠️ लेकिन दवाओं में यह घातक क्यों है

दवाओं में ग्लिसरीन या प्रोपिलीन ग्लाइकोल जैसे सुरक्षित पदार्थों की जगह यदि गलती से या सस्ते विकल्प के रूप में DEG मिल जाए,

तो यह जहरीला (toxic) साबित होता है।

यह शरीर में जाकर:

  • गुर्दे (Kidneys) को क्षति पहुँचाता है,
  • तंत्रिका तंत्र (Nervous system) को प्रभावित करता है,
  • और गंभीर मामलों में मौत तक हो सकती है।

👉 कई ऐतिहासिक घटनाएँ (जैसे 1937 का “Elixir Sulfanilamide disaster”, या हाल में गाम्बिया और भारत के मामलों) DEG की मिलावट से हुईं मौतों के कारण बनीं।

 

🛢️ अवैध घी और वसायुक्त तेल का जाल — लगभग 9,919 किग्रा पकड़ा

दिवाली से ठीक पहले, गुजरात पुलिस ने सूरत के पास लगभग 9,919 किलोग्राम नकली घी बरामद किया। 

यह घी अवैध उत्पादन इकाइयों में बनाया गया था — लगभग 2 वर्ष से इस काले व्यापार में सक्रिय। 

मामले में चार लोग गिरफ्तार हुए हैं। 

बरामद घी मुख्यतः नीचे इलाकों (slum areas) में कम दाम पर बेचा जा रहा था — ताकि जनता को मालूम न हो कि वह शुद्ध घी नहीं है। 

🧀 189 किलोग्राम पनीर बिना ठंडी व्यवस्था के पकड़ा गया

लुधियाना के जंगलर गाँव (जगरौन इलाके) के पास रुकी एक वाहन से 189 किग्रा पनीर बरामद हुआ, जिसे बिना शीतलन (refrigeration) सुविधा के ढोया जा रहा था। 

पनीर हरियाणा से खरीदा गया था और इसे सड़क किनारे के ढाबों तथा फास्ट फूड विक्रेताओं को बेचने की योजना थी। 

फूड सेफ़्टी टीम ने मौके पर नमूने लिए, और बाकी का माल नष्ट कर दिया। 

🧴 दिल्ली में 1,625 किग्रा मिलावटी घी का जाल फंसा

दिल्ली पुलिस और खाद्य सुरक्षा विभाग ने एक बड़े घी मिलावट रैकेट का पर्दाफाश करते हुए 1,600–1,625 किग्रा मिलावटी घी जब्त किया और छह व्यक्तियों को गिरफ्तार किया। 

यह मिलावटी घी वस्सपति, सस्ता परिष्कृत तेल, रासायनिक फ्लेवर और रंग मिलाकर तैयार किया गया था। 

असली घी की जगह इसे सस्ते तेलों से मिलाकर बेचकर मुनाफा कमाने की इस साजिश से सार्वजनिक स्वास्थ्य को भारी खतरा है। 

🚨 तस्वीर क्या कहती है — और क्या ना कहती है

  • ये घटनाओं का सिर्फ एक छोटा अंश है — सरकारों, निरीक्षकों और मीडियाई रिपोर्टिंग की सीमाओं के कारण अनगिनत मामले रोज़ाना छूट जाते होंगे।
  • घी, पनीर जैसे रोज़मर्रा के खाद्य उत्पादों में मिलावट न केवल स्वास्थ्य को प्रभावित करती है बल्कि विश्वसनीयता और उपभोक्ता विश्वास को भी ध्वस्त करती है।
  • दवाओं के मामले में, विशेषकर बच्चों की दवाएँ, ऐसी त्रासदियाँ पहले भी हुई हैं — गाम्बिया, उज्बेकिस्तान मामलों में भारतीय दवाओं की मिलावट से बच्चों की मौतें हुई थीं।  

📢 क्या किया जाना चाहिए?

  1. त्वरित जांच एवं दोषियों को दायित्व सौंपना — जिन दवाओं और खाद्य उत्पादों में मिलावट पाई गई, उनके निर्माता, वितरक, विक्रेता, और निगरानी एजेंसियाँ सभी जवाबदेह हों।
  2. नियामक प्रवर्तन सख्त करना — FSSAI, CDSCO जैसे निकायों की निगरानी एवं नियमित स्टेशनरी निरीक्षण बढ़ना चाहिए।
  3. पारदर्शिता और जानकारी सार्वजनिक करना — दुष्प्रभाव, जांच रिपोर्ट, निरस्त दवाएँ और खाद्य उत्‍पाद सार्वजनिक सूची में डालना चाहिए।
  4. उपभोक्ता जागरुकता — लोग जहां से लेना है, उसके बिल और प्रमाण माँगें; संदिग्ध दवाओं और खाद्य पदार्थों की रिपोर्ट करें।
  5. नीति सुधार एवं दंड व्यवस्था — अपराधी उद्योगपतियों और भ्रष्ट सरकारी अधिकारियों पर कठोर दंड — ज़्यादा से ज़्यादा जेल व जुर्माना — लागू किया जाना चाहिए।

ये अफ़सोस की बात है कि हम एक ऐसे सिस्टम में जी रहे हैं जहाँ रोजमर्रा की चीज़ें — खाना और दवा — सुरक्षित नहीं हैं। यह समय है हमारी आवाज़ बुलंद करने का— न कि सिर्फ इन अपराधों के शिकार बने रह कर चुप रहने का।

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