कस्टम विभाग में भ्रष्टाचार को लेकर एक ट्वीट से शुरू हुई बहस अब चेन्नई कस्टम्स और एक छोटे आयातक विनट्रैक इंक के बीच बड़े टकराव में बदल गई है। मामला अब देश में व्यापार करने की सुगमता बनाम कड़े नियमों के अनुपालन पर राष्ट्रीय बहस का रूप ले चुका है।
विवाद तब भड़का जब सोशल मीडिया पर कई यूज़र्स ने कस्टम अधिकारियों द्वारा रिश्वतखोरी और उत्पीड़न के अपने अनुभव साझा किए। इसी बीच, विनट्रैक इंक ने घोषणा की कि वह 1 अक्टूबर से भारत में आयात-निर्यात गतिविधियाँ बंद कर देगा, आरोप लगाते हुए कि पिछले 45 दिनों से चेन्नई कस्टम्स ने लगातार “उत्पीड़न” किया और कंपनी का कारोबार चौपट कर दिया।
हालाँकि, चेन्नई कस्टम्स ने इन आरोपों को “झूठा और सुनियोजित” बताते हुए विस्तृत जवाब जारी किया। विभाग ने कहा कि माल की जाँच में गलत वर्गीकरण, बिना घोषित किए गए यूएसबी चार्जिंग केबल, और बैटरी वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स 2022 के उल्लंघन सामने आए। कई बार अवसर देने के बावजूद कंपनी अनिवार्य EPR सर्टिफिकेट पेश करने में नाकाम रही और ग़लत दस्तावेज़ जमा किए।
कस्टम्स का आरोप है कि संबंधित आयातक ने एक अन्य जुड़ी हुई कंपनी के नाम से भी ऐसे ही माल की एंट्री की और अधिकारियों पर दबाव बनाने के लिए मीडिया धमकी व आत्महत्या की चेतावनी तक दी। विभाग ने साफ़ कहा—“कभी कोई रिश्वत नहीं माँगी गई। हर कार्रवाई कानूनसम्मत और प्रक्रियानुसार की गई।”
यह टकराव अब बड़े सवाल खड़े कर रहा है:
- क्या आयातक वास्तव में भ्रष्टाचार के शिकार हैं और कस्टम्स प्रक्रिया अपारदर्शी है?
- या फिर सोशल मीडिया का सहारा लेकर वे नियमों से बचने की कोशिश करते हैं?
वित्त मंत्रालय ने अब तक इस मामले पर कोई टिप्पणी नहीं की है। लेकिन यह घटनाक्रम निश्चित तौर पर भारत की ‘Ease of Doing Business’ छवि और नियम पालन के बीच संतुलन की असली परीक्षा बन गया है।