राज्य का दर्जा और 6ठी अनुसूची की मांग पर सड़कों पर उतरे युवा, सोनम वांगचुक का अनशन जारी; कांग्रेस बोली—अमित शाह गृहमंत्री के तौर पर नाकाम

लेह, लद्दाख। लद्दाख में राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची लागू करने की मांग को लेकर आंदोलन तेज हो गया है। मंगलवार को लेह में प्रदर्शन हिंसक हो गया, जब आंदोलनकारियों ने BJP कार्यालय और एक पुलिस वाहन को आग के हवाले कर दिया। पुलिस को हालात काबू में करने के लिए लाठीचार्ज और आंसू गैस का सहारा लेना पड़ा।

यह आंदोलन Leh Apex Body (LAB) और Kargil Democratic Alliance (KDA) के नेतृत्व में चल रहा है। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि लद्दाख को संवैधानिक सुरक्षा और पूर्ण राज्य का दर्जा दिए बिना वे पीछे नहीं हटेंगे।

✊ आंदोलन की चार मुख्य मांगें

युवाओं ने स्पष्ट किया है कि वे अपने चार सूत्रीय एजेंडे से पीछे नहीं हटेंगे:
1️⃣ लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा
2️⃣ छठी अनुसूची की संवैधानिक सुरक्षा
3️⃣ दो लोकसभा सीटें—एक लेह के लिए और एक कारगिल के लिए 4️⃣ अलग लोक सेवा आयोग (PSC)—लद्दाखी युवाओं के रोजगार के लिए

सोनम वांगचुक का आंदोलन

लद्दाख की जानी-मानी सामाजिक कार्यकर्ता और पर्यावरणविद् सोनम वांगचुक भी इस आंदोलन की अगुवाई कर रहे हैं।

वे पिछले कई हफ़्तों से अनशन पर बैठे हैं, और उनकी मांग है कि लद्दाख को पर्यावरणीय और सांस्कृतिक दृष्टि से बचाने के लिए छठी अनुसूची के तहत संवैधानिक सुरक्षा दी जाए।

उनके आंदोलन ने स्थानीय युवाओं और छात्रों को भी सड़कों पर उतरने के लिए प्रेरित किया है।

अमित शाह पर विपक्ष का वार

कांग्रेस ने इस मौके पर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को कठघरे में खड़ा किया।

कांग्रेस समर्थकों ने कहा कि कर्नाटक चुनाव के दौरान शाह ने चेतावनी दी थी कि कांग्रेस की जीत पर दंगे होंगे।

लेकिन आज कर्नाटक शांतिपूर्ण और प्रगतिशील है, वहीं सीधे गृह मंत्रालय के अधीन आने वाला लद्दाख हिंसा और अशांति की आग में जल रहा है।

कांग्रेस का आरोप है कि यह साबित करता है कि अमित शाह गृहमंत्री के रूप में विफल साबित हुए हैं।

तनाव और सुरक्षा व्यवस्था

लेह और कारगिल में इंटरनेट सेवाएं आंशिक रूप से बाधित की गई हैं ताकि अफवाहों को रोका जा सके।

कई जगहों पर अतिरिक्त पैरा-मिलिट्री फोर्सेज़ की तैनाती की गई है।

स्थानीय लोगों का कहना है कि यह सिर्फ कानून-व्यवस्था का मुद्दा नहीं है, बल्कि अस्तित्व और पहचान की लड़ाई है।

केंद्र सरकार और स्थानीय संगठनों के बीच अगली वार्ता 6 अक्टूबर को प्रस्तावित है।

लेकिन लगातार बिगड़ते हालात, सोनम वांगचुक का जारी अनशन और युवाओं का सड़कों पर उतरना यह संकेत दे रहा है कि लोगों का धैर्य अब जवाब दे रहा है।

यदि सरकार ने समय रहते ठोस समाधान नहीं निकाला, तो यह आंदोलन पूरे देश की राजनीति में एक बड़े सवाल के रूप में उभर सकता है।

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