नेपाल के प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली ने मंगलवार, 9 सितंबर 2025 को इस्तीफा दे दिया, क्योंकि देशभर में युवा-नेतृत्व वाले बड़े विरोध प्रदर्शनों ने हिंसक रूप धारण कर लिया। इन प्रदर्शनों की सीमा तब पार हो गई जब विरोधियों ने संसद भवन पर हमला करते हुए उसे आग के हवाले कर दिया—इससे राजनीतिक संकट गहराया।

प्रदर्शन का कारण और उसका विस्फोट

  • प्रतिरोध का मुख्य कारण था पिछले सप्ताह लागू किए गए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर लगाये गए प्रतिबंध, जिनमें Facebook, YouTube, X आदि शामिल थे। सरकार ने इन्हें “पंजीकरण की अनिवार्यता” का हवाला देते हुए प्रतिबंधित किया था, लेकिन इससे जनतंत्र और अभिव्यक्ति की आज़ादी पर प्रश्नचिन्ह लगने लगे।   
  • इस फैसले ने विशेष रूप से युवा वर्ग—जिसे “Gen-Z आंदोलन” कहा गया—में भारी आक्रोश भड़का दिया, जिनका आरोप था कि यह सरकार की निरंकुशता और राजनैतिक भ्रष्टाचार को छिपाने की कोशिश है।   

रविवार से हिंसा का शिखर: 8–9 सितंबर

  • 8 सितंबर को संसद भवन के बाहर हजारों युवाओं ने मार्च निकाला। पुलिस ने उन पर tear gas, रबड़ की गोलियां, और पानी की तोप से जवाब दिया, जिससे कम से कम 19 लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हुए।   
  • विरोध प्रदर्शन जारी रहा, और विरोधियों ने राजनीतिक दिग्गजों—जिनमें राष्ट्रपति रामचन्द्र पौडेल, गृह मंत्री रमेश लेखक, और अन्य नेताओं के घर शामिल थे—में आग लगा दी।   

सरकार की प्रतिक्रिया: तबाही से इस्तीफों तक

  • दहशत और बढ़ते विरोध के बीच, सरकार ने 8 सितंबर को ही सोशल मीडिया प्रतिबंध वापस ले लिया, लेकिन तब तक स्थिति बहुत बिगड़ चुकी थी।  
  • गृह मंत्री रमेश लेखक ने 8 सितंबर को नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया। अगले दिन, कृषि मंत्री रामनाथ अधिकारी, स्वास्थ्य मंत्री प्रदीप पौडेल और राष्ट्रिय स्वतन्त्र पार्टी के 21 सांसदों ने भी इस्तीफा दे दिया। 
  • 9 सितंबर को, प्रधानमंत्री ओली ने राष्ट्रपति रामचन्द्र पौडेल को अपना इस्तीफ़ा सौंपते हुए, कहा:
    “देश में जो असाधारण परिस्थितियाँ चल रही हैं, उन्हें देखते हुए तथा संवैधानिक राजनीतिक समाधान को सुचारू रूप से आगे बढ़ाने की दृष्टि से मैं आज ही तत्काल प्रभाव से प्रधानमंत्री पद से त्यागपत्र दे रहा हूँ।”   

राजनीतिक और सामाजिक परिणाम

  • इस हिंसक विरोध ने नेपाल को राजनीतिक अस्थिरता की गहरी स्थिति में धकेल दिया है, और देश में नए चुनावों की मांग तेज हो गई है।  
  • विरोध प्रदर्शन “Gen-Z बाग़ी”– विशेष रूप से युवा वर्ग, छात्र, और सोशल मीडिया पर सक्रिय नागरिकों द्वारा संचालित थे, जो भ्रष्टाचार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अवरोध और अवसरों की कमी को मुद्दा बना रहे थे।  
नेपाल के GenZ आंदोलन की ज़मीनी हकीकत

भारतीय न्यूज़ चैनलों में जिस तरह यह प्रचारित किया जा रहा है कि नेपाल में हालिया युवा आंदोलन केवल सरकार द्वारा प्रस्तावित सोशल मीडिया बैन के खिलाफ है, वह पूरी सच्चाई नहीं है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर प्रतिबंध लगाने का कदम अवश्य एक ट्रिगर बना, लेकिन इसके पीछे असली वजहें कहीं गहरी और पुरानी हैं।

यह आंदोलन पूरी एक पीढ़ी की सामूहिक पुकार है, जो इन कारणों से उपजी है:

  • दशकों से सरकारी संस्थाओं में व्याप्त व्यापक भ्रष्टाचार।
  • लगातार सरकारों के दौर में नागरिकों पर हुई दमनकारी नीतियाँ और अत्याचार।
  • लोकतांत्रिक सिद्धांतों को कमजोर करने वाली तानाशाही प्रवृत्तियाँ।

नेपाल की GenZ पीढ़ी के लिए सोशल मीडिया बैन केवल ताज़ा चिंगारी थी—एक ऐसा प्रतीक जिसने सत्ता में बैठे अभिजात वर्ग की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने और असहमति को कुचलने की कोशिश को उजागर किया।

लेकिन युवाओं का आक्रोश इससे कहीं अधिक गहरा है। यह बेरोज़गारी, आर्थिक कुप्रबंधन, लोकतांत्रिक मूल्यों के क्षरण और सत्ता के खुले दुरुपयोग के खिलाफ है।

इसलिए इसे केवल “एंटी सोशल मीडिया बैन प्रोटेस्ट” कह देना भ्रामक है। दरअसल, नेपाल में जो कुछ घटित हो रहा है, वह एक पूरी पीढ़ी की पारदर्शिता, जवाबदेही और सच्चे लोकतंत्र की मांग है।

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