विपक्षी दलों द्वारा शासित आठ राज्यों—कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, केरल, पंजाब, तमिलनाडु, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल—ने वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की दरों और स्लैब में कमी का समर्थन किया है। हालांकि, इन राज्यों ने साथ ही तीन अहम शर्तें भी केंद्र सरकार और जीएसटी काउंसिल के सामने रखी हैं।
पहली मांग यह है कि दरों में कटौती का वास्तविक लाभ उपभोक्ताओं तक पहुँचे, इसके लिए एक मजबूत तंत्र बनाया जाए। दूसरी, राज्यों को होने वाले राजस्व नुकसान की भरपाई 2024-25 को आधार वर्ष मानकर पाँच वर्षों तक की जाए। तीसरी, ‘पाप’ (sin) और लक्ज़री वस्तुओं पर प्रस्तावित 40% से अधिक अतिरिक्त कर राज्य सरकारों को पूरी तरह हस्तांतरित किया जाए। फिलहाल केंद्र सरकार अपने राजस्व का लगभग 17-18% विभिन्न उपकरों (cesses) से प्राप्त करती है, जिसे राज्यों से साझा नहीं किया जाता।
इन मांगों को राष्ट्रीय लोक वित्त एवं नीति संस्थान (NIPFP) की हालिया शोध-पत्रों से भी बल मिला है, जो स्वयं केंद्रीय वित्त मंत्रालय के अंतर्गत कार्य करता है।
कांग्रेस पार्टी लंबे समय से जीएसटी 2.0 की मांग करती रही है। पार्टी का कहना है कि दर स्लैब और दरों में कटौती के साथ-साथ प्रक्रियाओं और अनुपालन आवश्यकताओं को खासकर एमएसएमई क्षेत्र के लिए काफी सरल बनाया जाना चाहिए। कांग्रेस यह भी दोहराती रही है कि राज्यों के हितों की पूरी तरह रक्षा करना आवश्यक है।
अगले सप्ताह प्रस्तावित जीएसटी काउंसिल की बैठक को लेकर कांग्रेस और विपक्षी दलों ने आशा जताई है कि यह केवल सुर्खियाँ बटोरने वाली कवायद न होकर सच्चे अर्थों में सहकारी संघवाद (Cooperative Federalism) की भावना को मज़बूत करेगी।