अमेरिका द्वारा भारत पर लगाया गया 50% आयात शुल्क (टैरिफ) प्रभावी हो गया। इस कदम को भारतीय उद्योग के लिए करारा झटका माना जा रहा है।

आर्थिक विशेषज्ञों का अनुमान है कि इस फैसले से भारत की जीडीपी वृद्धि दर 6.5% से घटकर 5.6% रह जाएगी। इसका मतलब है कि भारतीय अर्थव्यवस्था को लगभग ₹2.17 लाख करोड़ (करीब 33 अरब डॉलर) का नुकसान होगा।

📉 सबसे बड़ा असर निर्यात पर

  • भारत के 66% निर्यात पर यह टैरिफ प्रभाव डालेगा, जिनमें टेक्सटाइल, रेडीमेड गारमेंट्स, जेम्स एंड ज्वेलरी, श्रिम्प, मशीनरी, कारपेट और फर्नीचर जैसे क्षेत्र शामिल हैं।
  • वित्त वर्ष 2025 में भारत का अमेरिका को निर्यात $86.5 अरब था, जो वित्त वर्ष 2026 में घटकर $49.6 अरब रहने का अनुमान है। यानी करीब $36.9 अरब (₹3.23 लाख करोड़) की गिरावट।

कृषि क्षेत्र, विशेष रूप से कॉटन किसान, पर भी इसका गहरा असर पड़ेगा।

🟥 भारत पर सबसे ज्यादा बोझ, अन्य देशों पर कम टैरिफ

  • बांग्लादेश: 35%
  • चीन: 30%
  • वियतनाम: 20%
  • इंडोनेशिया: 19%
  • फिलीपींस: 19%
  • कंबोडिया: 19%
  • यूरोपीय संघ: 15%
  • जापान: 15%
  • दक्षिण कोरिया: 15%
  • ब्रिटेन: 10%

यानि भारत पर लगाया गया टैरिफ बाकी देशों की तुलना में कहीं अधिक है, जिससे भारत की प्रतिस्पर्धा कमजोर होगी।

🟥 भारत की कीमत पर लाभ उठाने वाले देश

चीन, पाकिस्तान, बांग्लादेश, वियतनाम, इंडोनेशिया, श्रीलंका, कंबोडिया, थाईलैंड, मेक्सिको और तुर्की जैसे देश भारतीय बाजार हिस्सेदारी से लाभ उठाएँगे।

🟥 सवालों के घेरे में मोदी सरकार

विशेषज्ञों और विपक्ष का कहना है कि यह मोदी सरकार की कूटनीतिक और आर्थिक विफलता है।

  • आखिर भारत बेहतर सौदा क्यों नहीं कर सका, जबकि अन्य देशों पर कम टैरिफ लगा?
  • ‘नमस्ते ट्रंप’, ‘हाउडी मोदी’ और ‘अबकी बार ट्रंप सरकार’ जैसे कार्यक्रमों से भारत को क्या फायदा मिला?
  • रूस से तेल खरीदने का हवाला देकर अमेरिका ने यह टैरिफ लगाया, तो सवाल है कि सस्ता रूसी तेल आम भारतीयों तक क्यों नहीं पहुँचाया गया?

🟥 ‘स्वदेशी’ बहस पर विपक्ष का हमला

सरकार और समर्थक मीडिया इसे स्वदेशी और आत्मनिर्भर भारत की ओर धकेलने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन आलोचकों का कहना है:

  • मोदी सरकार को 11 साल हो गए, पर मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत असफल साबित हुए।
  • 2014 में चीन से भारत के कुल आयात का हिस्सा 11% था, जो अब 17% हो गया है।
  • व्यापार घाटा बढ़ा है और निर्यात कमजोर।
  • ऐसे में ‘स्वदेशी’ का नारा सिर्फ विफलता से ध्यान भटकाने की कवायद है।

भारत की अर्थव्यवस्था और उद्योग इस टैरिफ से करोड़ों रोजगार और खरबों की आमदनी गंवाने के खतरे में है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर भारत अमेरिका से कम टैरिफ वाला व्यापार समझौता कर पाता तो यह बड़ी उपलब्धि होती, लेकिन अब हालात उलटे हैं। सरकार पर आरोप है कि वह नीति बनाने के बजाय सिर्फ नैरेटिव प्रबंधन में उलझी हुई है।

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