गुजरात में पंजीकृत 10 ऐसे राजनीतिक दल हैं जिनका नाम तक आम जनता ने शायद ही सुना हो, लेकिन बीते पाँच वर्षों (2019-20 से 2023-24) में इन दलों को कुल 4,300 करोड़ रुपये का चंदा मिला है। चौंकाने वाली बात यह है कि इन पार्टियों ने अब तक बहुत ही सीमित चुनाव लड़े हैं और बेहद कम खर्च दिखाया है।
इन दलों ने तीन बड़े चुनावों — दो लोकसभा (2019, 2024) और एक विधानसभा (2022) — में मिलकर सिर्फ 43 उम्मीदवार खड़े किए। नतीजे में उन्हें कुल 54,069 वोट ही हासिल हुए। वहीं, चुनाव आयोग को सौंपी रिपोर्ट में इन दलों ने महज 39 लाख रुपये का चुनावी खर्च बताया, जबकि ऑडिट रिपोर्ट में खर्च का आंकड़ा 3,500 करोड़ रुपये दर्ज है।

किन दलों को मिला चंदा

रिपोर्ट में जिन दलों का नाम सामने आया है, उनमें शामिल हैं —

लोकशाही सत्ता पार्टी, भारतीय नेशनल जनता दल, स्वतंत्र अभिव्यक्ति पार्टी, न्यू इंडिया यूनाइटेड पार्टी, सत्यवादी रक्षक पार्टी, भारतीय जनपरिषद, सौराष्ट्र जनता पक्ष, जन मन पार्टी, मानवाधिकार नेशनल पार्टी और गरीब कल्याण पार्टी।

राहुल गांधी का सवाल

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इस मामले को लेकर चुनाव आयोग और केंद्र सरकार पर निशाना साधा। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म X पर लिखा:

“गुजरात में कुछ ऐसी अनाम पार्टियां हैं जिनका नाम किसी ने नहीं सुना — लेकिन 4,300 करोड़ का चंदा मिला! वे बेहद कम चुनाव लड़ीं और लगभग कुछ खर्च भी नहीं किया। यह पैसा आया कहां से? चला कौन रहा है इन्हें? और गया कहां?”

राहुल गांधी ने आगे पूछा कि क्या चुनाव आयोग इस मामले की जांच करेगा, या फिर “यहां भी पहले एफिडेविट मांगेगा और बाद में कानून बदलकर डेटा छिपा दिया जाएगा।”

चुनाव आयोग की चुप्पी

अब तक इस मामले पर चुनाव आयोग की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है। हालांकि, विपक्ष इसे लोकतंत्र की पारदर्शिता और चुनावी वित्त पोषण पर गंभीर सवाल के तौर पर देख रहा है।

बड़ा सवाल

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इतनी बड़ी राशि का चंदा ऐसे दलों को मिलना जो न तो मुख्यधारा की राजनीति में सक्रिय हैं और न ही जनता के बीच उनकी पहचान है, यह संकेत देता है कि कहीं न कहीं फंडिंग का इस्तेमाल दूसरे उद्देश्यों के लिए हो रहा हो सकता है।

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