संसद में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने भाजपा सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि उसने बहुजनों—दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों—के अधिकारों को छीनने के लि वन अधिकार पट्टों जैसे दस्तावेज़ों को हटाने का राजनीतिक हथियार बना लिया है। उन्होंने इसे “कागज़ मिटाओ, अधिकार चुराओ” नारा देते हुए एक बयान में लिखा कि कहीं वोटर लिस्ट से नाम कट जाते हैं तो कहीं आदिवासियों के वन अधिकार पट्टे ‘गायब’ करवा दिए जाते हैं ।
छत्तीसगढ़ में पट्टों का रिकॉर्ड ‘गायब’
राहुल गांधी ने मीडिया रिपोर्ट्स का हवाला देते हुए बताया कि छत्तीसगढ़ के बस्तर में 2,788 व्यक्तिगत वन अधिकार पट्टे गायब हो गए हैं, जबकि राजनांदगांव में आधे से ज़्यादा पट्टों का रिकॉर्ड अचानक लापता हो गया है । उन्होंने कहा कि “लेकिन कांग्रेस ने आदिवासियों के जल, जंगल, ज़मीन की रक्षा के लिए वन अधिकार अधिनियम बनाया—भाजपा उसे कमजोर कर उनका पहला हक़ छीन रही है” ।
“हम ऐसा नहीं होने देंगे”
राहुल गांधी ने कहा, “हम ऐसा नहीं होने देंगे—आदिवासी इस देश के पहले मालिक हैं, और हम हर हाल में उनके अधिकारों की रक्षा करेंगे” । उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा वोटर लिस्ट से बहुजनों के नाम काटकर और वन अधिकार रिकॉर्ड मिटाकर उन्हें इस लोकतांत्रिक प्रक्रिया से बाहर करने की कोशिश कर रही है ।
भाजपा क्या कह रही है?
इस मामले में भाजपा सरकार ने अब तक कोई आधिकारिक स्पष्टीकरण नहीं दिया है। हालांकि राज्य प्रशासन ने कुछ जिलों में रिकॉर्ड की कमी को “रिपोर्टिंग त्रुटि” या “गलतफहमी” से जोड़कर हल्के स्वर में नकारा है
राहुल गांधी का यह बयान सिर्फ एक राजनीतिक हमला नहीं, बल्कि आदिवासी, दलित और पिछड़ों के संवैधानिक अधिकारों से जुड़े एक गंभीर सवाल को उजागर करता है। सवाल यह है कि क्या वन अधिकार अधिनियम को कमजोर करने की कोशिश की जा रही है, या प्रशासनिक कारणों से कुछ त्रुटियां हुई हैं?