सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग (ECI) को निर्देश दिया है कि वह बिहार में Special Intensive Revision (SIR) प्रक्रिया के दौरान निरस्त किए गए लगभग 65 लाख मतदाताओं की सूची—उनके नाम और हटाए जाने के कारणों के साथ—प्रत्येक जिला निर्वाचन अधिकारी की वेबसाइट पर बूथ-वार प्रदर्शित करे और इसे EPIC नंबर द्वारा खोज योग्य बनाए ।
न्यायालय ने आधार कार्ड को भी वैध पहचान दस्तावेज की सूची में शामिल किए जाने का निर्देश दिया है, ताकि जो लोग सूची से हटाए गए हैं, वे अपिल करने हेतु आधार का उपयोग कर सकें ।
व्यापक प्रचार-प्रसार के निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने ECI को निर्देश दिया है कि सूची की उपलब्धता की जानकारी तक पहुँच के लिए निम्न माध्यमों में प्रचार किया जाए:
- बदलभाषी समाचार पत्रों (वर्नाक्युलर और अंग्रेज़ी) में विज्ञापन
- दूरदर्शन और रेडियो चैनलों पर प्रसारण
- डिस्ट्रिक्ट अधिकारियों के आधिकारिक सोशल मीडिया हैंडल्स पर सूचना ।
स्थानीय स्तर पर जानकारी की पहुँच
आयोग को यह भी निर्देश मिला है कि सभी पंचायत भवनों, ब्लॉक विकास कार्यालयों और पंचायत कार्यालयों पर बोर्डों के माध्यम से सूची का प्रदर्शन किया जाए, ताकि आम जनता मैन्युअल रूप से इसका अवलोकन कर सके ।
आदेश किन न्यायाधीशों ने पारित किया?
यह आदेश न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति जॉयमल्य बागची की खंडपीठ ने पारित किया। उन्होंने यह बताते हुए कहा कि इस कदम से मतदाता विश्वास बढ़ेगा और अनावश्यक आशंकाओं को दूर किया जा सकेगा ।
आयोग को इन निर्देशों का पालन अगले मंगलवार (19 अगस्त 2025) तक करना होगा, और मुख्य निर्वाचन अधिकारी की वेबसाइट पर भी सूची को अपलोड करना अनिवार्य है ।
पृष्ठभूमि
ECI ने SIR प्रक्रिया के तहत बिहार की प्रारूपित मतदाता सूची से 65.64 लाख नाम हटाए, जिससे कुल वोटर संख्या लगभग 7 crore 24 lakh रह गई—पहले यह लगभग 7 crore 90 lakh थी ।
इस पर विपक्ष और सामाजिक संगठनों ने गंभीर आपत्तियाँ जताई, जिसमें कहा गया कि इससे प्रवासी मजदूरों और अन्य वंचित समूहों को वोटर सूची से वंचित किया जा सकता है ।
विरोध के बीच, कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने “डेड घोषित” लोगों से मुलाकात करके इस प्रक्रिया की अव्यवस्था को उजागर किया, जिससे मामला और गरमाया ।
सुप्रीम कोर्ट की यह हस्तक्षेपकारी पहल और निर्देश ECI की कार्रवाई में पारदर्शिता लाकर मतदाता विश्वास को बहाल करने की दिशा में एक मजबूत कदम है। सूची और उसकी वजहों की सार्वजनिक उपलब्धता के साथ, मतदाता स्वयं अपनी स्थिति देख सकते हैं, और गलत कटौती की स्थिति में आधार कार्ड के जरिए दावा कर सकते हैं—यह लोकतंत्र की मजबूती की ओर एक सार्थक कदम माना जाएगा।