लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने संसद में घोषणा की कि अलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा पर लगे गंभीर आरोपों की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन किया गया है। यह कदम जज (इंक्वायरी) एक्ट, 1968 के तहत महाभियोग की प्रक्रिया की ओर एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
समिति में शामिल सदस्य हैं:
- जस्टिस अरविंद कुमार, सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश
- जस्टिस मनिंदर मोहन श्रीवास्तव, मुख्य न्यायाधीश, मद्रास हाई कोर्ट
- बी. वी. आचार्य, वरिष्ठ अधिवक्ता, कर्नाटक हाई कोर्ट
अध्यक्ष बिरला ने कहा, “समिति यथाशीघ्र अपनी रिपोर्ट पेश करेगी। रिपोर्ट मिलने तक प्रस्ताव लंबित रहेगा।”
विवाद की पृष्ठभूमि
मार्च 2025 में दिल्ली स्थित जस्टिस वर्मा के सरकारी आवास के आउटहाउस में आग लगने की घटना के बाद, वहां से जली और अधजली नकदी के बंडल बरामद हुए। एक वायरल वीडियो के जरिए मामला सार्वजनिक हुआ और इसने न्यायपालिका में पारदर्शिता को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए।
तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजय खन्ना ने इस मामले में एक इन-हाउस समिति गठित की, जिसने सीसीटीवी फुटेज, सबूत और गवाहियों की जांच के बाद जस्टिस वर्मा के खिलाफ रिमूवल की सिफारिश की। इसके बाद वर्मा को दिल्ली हाई कोर्ट से अलाहाबाद हाई कोर्ट में स्थानांतरित कर दिया गया और उनके सभी न्यायिक कार्य निलंबित कर दिए गए। वर्मा ने इन आरोपों को साजिश करार देते हुए खुद को निर्दोष बताया।
सुप्रीम कोर्ट का रुख
जस्टिस वर्मा ने इन-हाउस जांच और सीजीआई की सिफारिश को चुनौती दी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी। अदालत ने कहा कि जांच पूरी तरह नियमों के अनुसार हुई और वर्मा का आचरण “विश्वास दिलाने योग्य नहीं” था। कोर्ट ने यह भी पूछा कि अगर उन्हें समिति पर आपत्ति थी तो उन्होंने चुनौती देने में इतना समय क्यों लिया।
आगे की राह
अब गठित 3 सदस्यीय समिति आरोपों की विस्तृत जांच कर अपनी रिपोर्ट संसद को सौंपेगी। इसके बाद ही महाभियोग प्रस्ताव पर आगे की कार्रवाई होगी। यह मामला देश में न्यायिक जवाबदेही और नैतिक मानकों की परीक्षा के रूप में देखा जा रहा है, और इसकी रिपोर्ट पर पूरे देश की निगाहें टिकी हैं।