केरल के पूर्व मुख्यमंत्री और वामपंथी राजनीति के दिग्गज नेता वी.एस. अच्युतानंदन का आज दोपहर निधन हो गया। वे 101 वर्ष के थे। पिछले माह उन्हें हृदयगति रुकने के बाद SUT अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां वे गहन चिकित्सा कक्ष में थे। उनकी मृत्यु आज दोपहर लगभग 3:20 बजे हुई।

सादगी से संघर्ष तक का सफर

अच्युतानंदन का जन्म 20 अक्टूबर 1923 को केरल के अलप्पुझा जिले के पुनप्परा गांव में हुआ था।

उन्होंने एक मजदूर के रूप में करियर शुरू किया और श्रमिक आंदोलनों से होते हुए भारत में कम्युनिस्ट आंदोलन के शीर्षस्थ नेता बने।

1964 में सीपीआई से विभाजन के बाद सीपीआई(एम) के संस्थापक सदस्यों में वे शामिल रहे।

वे 2006 से 2011 तक केरल के मुख्यमंत्री रहे — मुख्यमंत्री बनने वाले सबसे उम्रदराज व्यक्ति (82 वर्ष) के रूप में भी वे याद किए जाएंगे।

वे लंबे समय तक विपक्ष के नेता भी रहे और भूमि सुधार, भ्रष्टाचार-विरोधी अभियानों व सामाजिक न्याय के मुद्दों के प्रबल पक्षधर थे।

💐 राजनीतिक और सामाजिक जगत से श्रद्धांजलियां

  • केरल के राज्यपाल आर.वी. अर्लेकर ने कहा:
    “वी.एस. अच्युतानंदन जी के निधन से एक युग का अंत हो गया है। उनके संघर्ष और सिद्धांतों को सदैव याद रखा जाएगा।”
  • शशि थरूर (कांग्रेस सांसद) ने शोक व्यक्त करते हुए कहा:
    “केरल की वामपंथी राजनीति का एक स्तंभ आज हमारे बीच नहीं रहा। करोड़ों लोगों के लिए वे उम्मीद का प्रतीक थे।”
  • मोहम्मद रियास (मंत्री, केरल सरकार) ने लिखा:
    “जब तक प्रतिरोध जीवित रहेगा, अच्युतानंदन भी जीवित रहेंगे।”
  • सीपीआई(एम) पोलित ब्यूरो ने उन्हें “कम्युनिस्ट आंदोलन का एक अद्वितीय सेनानी” बताते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की।

अंतिम यात्रा और श्रद्धांजलि

  • उनका पार्थिव शरीर AKG सेंटर, तिरुवनंतपुरम में आम जनता के अंतिम दर्शन के लिए रखा जाएगा।
  • इसके बाद अंतिम संस्कार के लिए उनका शव अलप्पुझा ले जाया जाएगा।
  • अंतिम संस्कार समारोह 23 जुलाई को पुनप्परा-वायलार स्मारक स्थल पर होने की संभावना है।

उनकी विरासत — जनता का मुख्यमंत्री

वी.एस. अच्युतानंदन अपनी ईमानदारी, सादगी और जन सरोकारों के प्रति प्रतिबद्धता के लिए पूरे देश में जाने जाते थे। भूमि सुधार, मुफ्त सॉफ्टवेयर शिक्षा, भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष और विकास कार्यों में उनकी सक्रिय भूमिका ने उन्हें जनता के दिलों में विशेष स्थान दिलाया।

राजनीति का एक युग समाप्त

उनके निधन के साथ ही भारत में वामपंथी आंदोलन के “संघर्ष और सिद्धांतों की राजनीति” के एक युग का पटाक्षेप हो गया। देशभर के नेताओं और संगठनों ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की और उनकी विचारधारा को आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्त्रोत बताया।

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