11 जुलाई 2006 को हुए मुंबई लोकल ट्रेन बम धमाकों के मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए सभी 12 दोषियों को बरी कर दिया है। जस्टिस अनिल किलोर और श्याम चांडक की विशेष पीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपियों के खिलाफ कोई ठोस सबूत पेश नहीं कर सका और इस कारण उनकी दोषसिद्धि को रद्द किया जाता है।

🔥 2006 धमाके और मामले की पृष्ठभूमि

  • 11 जुलाई 2006 को मुंबई की पश्चिमी रेलवे की लोकल ट्रेनों में सात सिलसिलेवार धमाके हुए थे, जिनमें 189 लोगों की मौत और 820 से ज्यादा लोग घायल हुए थे।
  • महाराष्ट्र एटीएस ने इस मामले में 13 लोगों को आरोपी बनाया, जिनमें से 12 को 2015 में मकोका अदालत ने दोषी ठहराया था: 5 आरोपियों को मौत की सजा दी गई थी।7 को उम्रकैद (मृत्यु तक) की सजा सुनाई गई थी।

हाईकोर्ट के मुख्य निष्कर्ष

अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष दोष साबित करने में पूरी तरह असफल रहा।

अदालत के शब्दों में —
“यह विश्वास करना कठिन है कि आरोपियों ने यह अपराध किया है।”

सबूतों की विश्वसनीयता, फॉरेंसिक प्रमाण, गवाहों के बयान, और कबूलनामों को कोर्ट ने संदेह के घेरे में रखा।अदालत ने एटीएस की जांच को “बहुत असामान्य” करार दिया और जांच एजेंसी की कार्यशैली पर सवाल उठाए।

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फैसले के परिणाम

हाईकोर्ट ने सभी दोषियों को व्यक्तिगत मुचलके पर रिहा करने का आदेश दिया है, बशर्ते वे किसी अन्य मामले में वांछित न हों। इन 12 में से कई लोग 19 वर्षों से जेल में बंद थे, जिन्हें अब दोषमुक्त कर दिया गया है।

महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) की विशेष अदालत ने पांच दोषियों – कमाल अंसारी, मोहम्मद फैसल अताउर रहमान शेख, एहतेशाम कुतुबुद्दीन सिद्दीकी, नवीद हुसैन खान और आसिफ खान – को ‘बम लगाने’ के साथ-साथ आतंकी गतिविधियों का प्रशिक्षण लेने, साज़िश रचने और अन्य आरोपों में दोषी ठहराते हुए मौत की सज़ा सुनाई थी । जिन सात अन्य लोगों को उम्रकैद (मृत्यु तक) की सज़ा सुनाई गई, उनमें तनवीर अहमद मोहम्मद इब्राहिम अंसारी, मोहम्मद माजिद मोहम्मद शफी, शेख मोहम्मद अली आलम शेख, मोहम्मद साजिद मरगूब अंसारी, मुज़म्मिल अताउर रहमान शेख, सुहैल महमूद शेख और ज़मीर अहमद लतीउर रहमान शेख शामिल हैं।

यह फैसला भारत में आतंकवाद से जुड़े मामलों की जांच प्रणाली पर बड़ा सवालिया निशान खड़ा करता है।मानवाधिकार संगठनों और कानूनी विशेषज्ञों ने इसे न्याय प्रणाली की एक गंभीर चूक माना है। यह निर्णय भविष्य में ऐसे मामलों में जांच की पारदर्शिता और जवाबदेही को लेकर बहस को नया आयाम देगा।

क्या आगे होगा?

  • महाराष्ट्र सरकार के पास सुप्रीम कोर्ट में अपील करने का विकल्प है, लेकिन हाईकोर्ट की कड़ी टिप्पणियों के बाद इसकी संभावनाएं कमजोर नजर आ रही हैं।
  • एटीएस की जांच प्रक्रिया पर विस्तृत जांच और जवाबदेही तय करने की मांग तेज हो सकती है।

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