भारत सरकार ने कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों के लिए बनाए गए 2015 के सख्त सल्फर उत्सर्जन मानदंडों में बड़ी राहत दी है। शुक्रवार देर रात जारी केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की अधिसूचना के मुताबिक, अब देश के 79% कोयला आधारित बिजली संयंत्रों को सल्फर उत्सर्जन नियंत्रक प्रणाली (FGD) लगाने से छूट मिल गई है — बशर्ते वे घनी आबादी और प्रदूषित शहरों के 10 किलोमीटर के दायरे से बाहर हों।
क्या था पुराना नियम?
2015 में बनाए गए नियमों के अनुसार, देश भर के लगभग 540 कोयला आधारित बिजली संयंत्रों को फ्लू-गैस डीसल्फराइजेशन (FGD) प्रणाली लगाना था, जिससे सल्फर डाइऑक्साइड का उत्सर्जन रोका जा सके। अनुमान था कि इस योजना पर लगभग 30 बिलियन डॉलर खर्च होने थे।
नया आदेश क्या कहता है?
- 79% संयंत्र (जो प्रदूषित व घनी आबादी वाले इलाकों से 10 किमी बाहर हैं) — FGD लगाने से पूर्ण छूट
- 11% संयंत्र (जो आबादी वाले क्षेत्रों के पास हैं) — ‘केस टू केस’ आधार पर FGD लगाने का निर्णय लिया जाएगा
- 10% संयंत्र (जो दिल्ली व अन्य मिलियन-प्लस शहरों के पास हैं) — इन्हें दिसंबर 2027 तक FGD लगाना अनिवार्य
क्यों किया बदलाव?
सरकार के अनुसार, बिजली कंपनियों की लागत और ऊर्जा मांग के दबाव को देखते हुए यह निर्णय लिया गया है।
लेकिन पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम वायु गुणवत्ता और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बन सकता है।
रेयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार — सरकार इस कदम से उद्योगों पर आर्थिक बोझ कम करना चाहती है, लेकिन इसके पर्यावरणीय दुष्प्रभाव की आशंका को लेकर चिंता जताई जा रही है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
- पर्यावरणविद्: “यह निर्णय आने वाले समय में वायु प्रदूषण को और बढ़ा सकता है, खासकर ग्रामीण इलाकों में।”
- ऊर्जा कंपनियां: “इससे बिजली उत्पादन लागत में कमी आएगी, लेकिन सतत विकास पर असर पड़ सकता है।”
भारत सरकार का यह फैसला आर्थिक दृष्टि से ऊर्जा कंपनियों को राहत जरूर देगा, लेकिन इसके पर्यावरणीय और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर चिंताएं गहरा रही हैं। दिसंबर 2027 तक अब केवल उन संयंत्रों पर ही सख्ती रहेगी, जो बड़े शहरों के नजदीक हैं।