बिहार में मतदाता सूची पुनरीक्षण प्रक्रिया में धांधली और अनियमितताओं को लेकर उठाए गए सवालों के बाद वरिष्ठ पत्रकार अजीत अंजुम के खिलाफ दर्ज की गई FIR ने सियासी माहौल गरमा दिया है। पत्रकारिता जगत से लेकर विपक्षी दलों तक इस कार्रवाई की कड़ी आलोचना हो रही है।

बताया जा रहा है कि अजीत अंजुम ने मतदाता सूची पुनरीक्षण प्रक्रिया में सामने आ रही अनियमितताओं और कथित गड़बड़ियों को लेकर सवाल उठाए थे। उन्होंने सोशल मीडिया और रिपोर्टिंग के जरिए मतदाताओं के अधिकारों से जुड़ी इस गंभीर प्रक्रिया में पारदर्शिता की मांग की थी। लेकिन इस पर प्रतिक्रिया देने की बजाय, बिहार सरकार और चुनाव आयोग ने उनके खिलाफ FIR दर्ज करवा दी।

राजनीतिक हलकों में नाराजगी

राष्ट्रीय जनता दल (RJD) समेत विपक्षी दलों ने इस घटना को लोकतंत्र पर हमला करार दिया है। आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने कहा,

“यह सरकार एजेंसियों का दुरुपयोग कर सवाल उठाने वालों को डराना चाहती है। अजीत अंजुम जी ने जनता के हक में सवाल उठाए हैं, उन पर FIR दर्ज करना घोर निंदनीय है।”

तेजस्वी यादव ने यह भी कहा कि देश में अघोषित आपातकाल जैसा माहौल बना दिया गया है, जहां सरकार और उसके एजेंडे के खिलाफ आवाज उठाने वालों को हर स्तर पर प्रताड़ित किया जा रहा है।

पत्रकारिता जगत में रोष

वरिष्ठ पत्रकारों और प्रेस संस्थानों ने भी इस कार्रवाई पर गहरी चिंता जताई है। मीडिया जगत का कहना है कि

“मतदाता सूची जैसी लोकतांत्रिक प्रक्रिया में गड़बड़ियों की ओर ध्यान दिलाना एक पत्रकार का कर्तव्य है, और इसे दबाने की कोशिश बेहद खतरनाक संकेत है।”

क्या है मामला?

बताया जा रहा है कि अजीत अंजुम ने अपने कार्यक्रम और सोशल मीडिया पोस्ट में बिहार में मतदाता सूची पुनरीक्षण अभियान के दौरान हो रही कथित धांधलियों और प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी की बात उठाई थी। चुनाव आयोग ने इस पर नाराजगी जताते हुए उनके खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की, जिसके बाद FIR दर्ज कर दी गई।

लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आज़ादी पर सवाल

इस घटना ने एक बार फिर सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या अब लोकतंत्र में नागरिक और पत्रकार अपने मताधिकार से जुड़े सवाल भी नहीं उठा सकते? क्या सवाल पूछना अब अपराध है?

विपक्ष और पत्रकारिता जगत ने मांग की है कि FIR तुरंत वापस ली जाए और लोकतांत्रिक मूल्यों का सम्मान किया जाए।

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