देश भर के 150 नागरिक समाज समूहों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक खुला पत्र लिखकर आरोप लगाया है कि वन अधिकार कानून, 2006 (Forest Rights Act, 2006) को व्यवस्थित और निरंतर तरीके से पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा कमजोर किया जा रहा है। पत्र में सरकार की नीतियों और कार्रवाइयों पर गंभीर सवाल उठाए गए हैं, जो विशेष रूप से आदिवासी समुदायों और जंगलों में रहने वाले अन्य पारंपरिक समुदायों के जीवन और आजीविका को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर रहे हैं।

नागरिक समूहों ने पांच बड़े बिंदुओं पर प्रधानमंत्री का ध्यान आकर्षित किया है:

मंत्री के भ्रामक बयान

पत्र में कहा गया है कि स्वयं पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री ने कई मौकों पर यह बयान दिया है कि वन अधिकार कानून, 2006 के क्रियान्वयन के कारण देश में प्रमुख वन क्षेत्रों का क्षरण और नुकसान हुआ है। नागरिक समूहों का कहना है कि यह आरोप तथ्यात्मक रूप से गलत और भ्रामक है।

अवैध आंकड़ों का प्रस्तुतिकरण

उन्होंने यह भी आरोप लगाया है कि संसद और राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) के समक्ष बार-बार ऐसे आंकड़े पेश किए जा रहे हैं जो कानूनी रूप से अस्थिर और भ्रामक हैं, जिनमें आदिवासियों और अन्य समुदायों द्वारा वन भूमि पर अतिक्रमण का झूठा चित्रण किया जाता है।

65,000 परिवारों को बेदखल करने का आदेश

पत्र में यह भी उजागर किया गया है कि राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) ने जून 2024 में लगभग 65,000 परिवारों को देश भर के बाघ अभयारण्यों से बेदखल करने का आदेश दिया है। यह आदेश न केवल मानवाधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि वन अधिकार कानून का भी सीधा अपमान है।

वन क्षेत्र के नुकसान का गलत ठीकरा वन अधिकार कानून पर

भारतीय वन सर्वेक्षण (Forest Survey of India) द्वारा पिछले दशक में वन क्षेत्र में आई गिरावट का जिम्मेदार वन अधिकार कानून, 2006 को ठहराना भी पत्र में गंभीर चिंता का विषय बताया गया है। समूहों का कहना है कि वन क्षेत्र की हानि के पीछे असल में वाणिज्यिक, औद्योगिक और अवैध गतिविधियां जिम्मेदार हैं।

वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 में संशोधन और नए नियमों की आलोचना

नागरिक समूहों ने 2023 में वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 में किए गए संशोधनों और वन संरक्षण एवं संवर्द्धन नियम, 2023 की तीखी आलोचना की है। उनका कहना है कि ये संशोधन और नियम जल्दीबाजी में और बिना समुचित बहस के संसद से पारित कराए गए हैं, जो वनों की गुणवत्ता और संरक्षण के लिए गंभीर खतरा हैं।

आदिवासियों और पर्यावरण पर बड़ा असर

पत्र में कहा गया है कि ये सभी मुद्दे न केवल आदिवासी और वन समुदायों के मौलिक अधिकारों को प्रभावित कर रहे हैं, बल्कि भारत की पारिस्थितिकी और पर्यावरणीय सुरक्षा के लिए भी अत्यंत घातक हैं।

पत्र के अंत में नागरिक समूहों ने प्रधानमंत्री से आग्रह किया है कि इन मुद्दों पर गंभीर चर्चा हो, लेकिन साथ ही यह भी आशंका जताई कि मोदी सरकार के अब तक के रुख को देखते हुए शायद इन समस्याओं पर न तो विचार किया जाएगा और न ही प्रभावित समुदायों को सुना जाएगा।

इस मुद्दे पर विस्तृत जानकारी यहां देखें।

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