बिलासपुर–उरगा राष्ट्रीय राजमार्ग के लिए भू-अर्जन के दौरान ग्राम ढेका में मुआवजा भुगतान में भारी गड़बड़ी सामने आई। तहसीलदार और पटवारी ने राजस्व अभिलेखों में कुछ व्यक्तियों के नाम अवैध रूप से दर्ज किए, जिससे मुआवजे की राशि में भारी वृद्धि हुई; इस फर्जीवाड़े से शासन को आर्थिक क्षति उठानी पड़ी ।
एसडीएम और जिला समिति की जांच में तत्कालीन तहसीलदार डी.एस. उइके और पटवारी सुरेश कुमार मिश्रा की भूमिका संदिग्ध पाई गई। इसके बाद पीड़ितों की शिकायत पर तोरवा पुलिस ने आईपीसी की धाराओं 420, 34, 467, 468, 471 के तहत FIR दर्ज की ।
सुरेश मिश्रा को 24–25 जून को निलंबित किया गया था, उनके रिटायरमेंट की तारीख मात्र दो दिन बाद यानी 30 जून, 2025 थी ।
27 जून को वे अपनी बहन के जोंकी गाँव स्थित फार्महाउस में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। मौके पर सुसाइड नोट मिला, जिसमें उन्होंने खुद को निर्दोष बताया और बड़े अधिकारियों पर षड्यंत्र रचने का आरोप लगाया ।
सुरेश मिश्रा ने पत्र में लिखा कि वे निर्दोष हैं और उन पर लगाए गए आरोप निराधार हैं। उन्होंने अन्य अधिकारियों का नाम भी लिखा है, जिन पर साजिश का आरोप है ।
एक अन्य पत्र जिला कलेक्टर को लिखे, जिसमें वे अपनी बहाली की मांग कर रहे थे ।
क्या सवाल उठते हैं?
- क्या अधिकारियों द्वारा मिलीभगत कर किसानों की भूमि मुआवजे की राशि को बढ़ा-चढ़ा कर दिखाया गया?
- क्या धीमी कार्रवाई और मानसिक दबाव ने सुरेश मिश्रा को आत्महत्या के लिए प्रेरित किया?
- कौन-कौन से अन्य अधिकारियों या कर्मचारियों ने इस घोटाले में भाग लिया था—क्या उन पर भी कार्रवाई होगी?
यह मामला सिर्फ एक पटवारी की आत्महत्या भर नहीं, बल्कि भारतमाला परियोजना में बड़े पैमाने पर हुई वित्तीय हेराफेरी का एक छोटा अंश है। इससे प्रशासनिक जवाबदेही, भ्रष्टाचार उन्मूलन और आर्थिक पारदर्शिता पर सवाल खड़े होते हैं। अब यह निर्भर करता है कि जांच टीम इस घोटाले की गहराई तक पहुंच पाती है या नहीं।