देश में प्रोटीन सप्लिमेंट्स की गुणवत्ता और पारदर्शिता को लेकर चर्चित रहे ‘सिटिज़न्स प्रोटीन प्रोजेक्ट’ का दूसरा चरण अब शुरू हो चुका है। इस बार भी यह प्रयास नागरिकों द्वारा, नागरिकों के लिए, और नागरिकों की भागीदारी से किया जा रहा है।

क्या है ‘सिटिज़न्स प्रोटीन प्रोजेक्ट – 2’?

इस परियोजना का नेतृत्व प्रसिद्ध लीवर विशेषज्ञ डॉ. एबी फिलिप्स (जिन्हें “द लीवर डॉक्टर” के नाम से भी जाना जाता है) कर रहे हैं। इस परियोजना में भारत में बिकने वाले मेडिकल ग्रेड और वेलनेस इंडस्ट्री के 30 से अधिक प्रोटीन सप्लिमेंट्स का स्वतंत्र और सरकारी मान्यता प्राप्त लैब में विश्लेषण किया जाएगा। इसका मकसद है – प्रोटीन की वास्तविक मात्रा, मिलावट, दूषित तत्वों, और लेबलिंग की सच्चाई को जनता के सामने लाना।

क्यों ज़रूरी है यह अध्ययन?

डॉ. फिलिप्स ने बताया कि भारत में लाखों मरीज, विशेष रूप से कैंसर, लीवर और किडनी से जूझ रहे रोगियों को अस्पतालों में जो प्रोटीन सप्लिमेंट्स दिए जाते हैं, उनकी गुणवत्ता और कीमत को लेकर सवाल उठते रहे हैं।

एक उदाहरण देते हुए डॉ. फिलिप्स ने बताया कि:

Hepapro Protein (British Biologicals द्वारा निर्मित), जो कि लिवर मरीजों को दिया जाता है, उसमें प्रति 100 ग्राम में केवल 12 ग्राम प्रोटीन होता है।

जबकि The Whole Truth Whey Isolate प्रति 35 ग्राम स्कूप में 30 ग्राम तक प्रोटीन प्रदान करता है।

Hepapro की लागत ₹11,000–15,000 प्रति माह आती है, वहीं Whole Truth की मात्र ₹4,300।

इतना ही नहीं, मेडिकल ग्रेड प्रोटीन कंपनियाँ कोई सार्वजनिक लैब रिपोर्ट या भारी धातु/मिलावट की जाँच नहीं देतीं, जबकि वेलनेस कंपनियाँ जैसे The Whole Truth हर बैच की रिपोर्ट ऑनलाइन देती हैं।

पिछला प्रोजेक्ट क्यों हुआ था चर्चित?

पहले चरण में 36 प्रोटीन सप्लिमेंट्स का विश्लेषण हुआ था, जिसमें भारी पैमाने पर गलत लेबलिंग और मिलावट सामने आई थी। यह अध्ययन इतना वायरल हुआ कि FSSAI को भी कड़े दिशा-निर्देश जारी करने पड़े। मीडिया, सोशल मीडिया और स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने इसकी खुलेआम सराहना की थी।

आपकी मदद से आगे बढ़ेगा प्रोजेक्ट

इस बार डॉ. फिलिप्स और सहयोगियों ने ₹45,484 की लागत से 28 उत्पाद खरीद लिए हैं।

विश्लेषण तभी शुरू किया जाएगा जब 75% प्रारंभिक फंडिंग लक्ष्य पूरा हो जाएगा ।

यह सिर्फ एक अध्ययन नहीं, एक आंदोलन है

यह प्रोजेक्ट साबित करता है कि अगर नागरिक जागरूक हों, तो सरकार और उद्योग जगत की जवाबदेही तय की जा सकती है। यह अध्ययन विश्व के लिए पहला होगा, जिसमें मेडिकल और वेलनेस प्रोटीन का तुलनात्मक विश्लेषण वैज्ञानिक और सार्वजनिक रूप से किया जाएगा।

आपकी भागीदारी न केवल इस अध्ययन को सशक्त बनाएगी, बल्कि भारत को सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक उदाहरण बना सकती है।

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INTRODUCING THE CITIZEN’S PROTEIN PROJECT – TWO

🗣️ “नागरिकों की विज्ञान में भागीदारी, सार्वजनिक स्वास्थ्य की सबसे बड़ी रक्षा बन सकती है।” – डॉ. एबी फिलिप्स

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