छत्तीसगढ़ स्वास्थ्य विभाग द्वारा अस्पतालों में पत्रकारों के प्रवेश पर लगाए गए प्रतिबंध की खबरों पर सरकार ने विरोध के बाद यह निर्णय स्थगित करने की घोषणा की है। इसके साथ ही विपक्षी दलों ने इसे लोकतांत्रिक व्यवस्था के खिलाफ बताते हुए तीखी आलोचना की है।

क्या था मुद्दा?

छत्तीसगढ़ के सरकारी अस्पतालों में संवेदनशील क्षेत्रों (जैसे वार्ड, ओपीडी, आईसीयू) में सिर्फ प्रो–नियुक्त पीआरओ (Public Relations Officers) ही पत्रकारों से बातचीत कर सकते, मीडिया द्वारा कैमरा या रिकॉर्डिंग बिना लिखित अनुमति निषिद्ध रखने की नई गाइडलाइन जारी की गई थी 

इसके तहत पत्रकारों को लिखित पूर्व सहमति और प्रो की मौजूदगी अनिवार्य कर दी गई थी, जिससे रोगियों की गोपनीयता की आड़ में सूचना पर नियंत्रण का आरोप लगा ।

विरोध और सरकार की प्रतिक्रिया

रायपुर और अन्य स्थानों पर पत्रकारों और प्रेस क्लब ने विरोध प्रदर्शन किया, इसे लोकतंत्र के खिलाफ बताते हुए आरोप लगाया कि इससे जनता का भरोसा टूटा और पारदर्शिता पर आंच आएगी ।

विपक्षी कांग्रेस के नेताओं ने इस प्रतिबंध को लोकतांत्रिक अधिकारों का उल्लंघन बताया, आरोप लगाया कि सरकार भ्रष्टाचार, कमीशनखोरी और खराब व्यवस्थाओं की रिपोर्ट से बचना चाहती है।

सरकार ने क्या कहा?

स्वास्थ्य विभाग का कहना था कि यह गाइडलाइन रोगियों की निजता और गोपनीयता की रक्षा के लिए है।

लेकिन बढ़ते विरोध को देखते हुए, सरकार ने पत्रकारों की अस्पतालों में एंट्री पर लगी रोक को अस्थायी रूप से रोकने का निर्णय लिया।

विपक्ष का आरोप

विपक्ष का मानना है कि यह कदम सरकार की अपारदर्शिता और मीडिया पर नियंत्रण का संकेत है।

कांग्रेस नेताओं ने इसे प्रजातंत्र में ट्रैफिक जाम के समान, गैरकानूनी और असंवैधानिक करार दिया।

सरकार द्वारा अस्पतालों में मीडिया पहुँच को नियंत्रित करने की कोशिश विवाद का विषय बनी। स्वास्थ्य मंत्री का तर्क है कि यह निजी जानकारी की सुरक्षा के लिए है, जबकि विरोधी इसे भय और भ्रष्टाचार छिपाने की नीति मान रहे हैं। जैसे-जैसे यह मामला गरमा रहा है, अब मुख्य सवाल यह है कि स्वास्थ्य विभाग और मीडिया के बीच गोपनीयता और पारदर्शिता का संतुलन कैसे स्थापित होगा।

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