भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा हाल ही में जारी आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2024-25 में भारत में शुद्ध प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (नेट एफडीआई) में 96% की भारी गिरावट दर्ज की गई है, जो घटकर मात्र $0.4 बिलियन रह गया है, जबकि पिछले वर्ष यह $10.1 बिलियन था ।
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने इस गिरावट को भारत में निवेशकों के बीच बढ़ती अनिश्चितता का संकेत बताया है। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर कहा, “इस नाटकीय गिरावट के लिए जो भी आधिकारिक स्पष्टीकरण दिया जा रहा है, सच्चाई यह है कि यह भारत में भारी निवेश अनिश्चितता को दर्शाता है – जो न केवल विदेशी निवेशकों को बल्कि भारतीय कंपनियों को भी हतोत्साहित कर रहा है, जो अब देश में निवेश करने के बजाय विदेशों में निवेश करना पसंद कर रहे हैं।”
कांग्रेस ने इस गिरावट को सरकार की आर्थिक नीतियों की विफलता करार दिया है, जबकि भाजपा ने कांग्रेस के आरोपों को भ्रामक और तथ्यों से परे बताया है। भाजपा के आईटी विभाग के प्रमुख अमित मालवीय ने कहा, “कांग्रेस की ‘नेट एफडीआई’ पर अति-निर्भरता न केवल आर्थिक रूप से भ्रामक है, बल्कि यह या तो अज्ञानता को दर्शाती है या तथ्यों का जानबूझकर विकृति है।” उन्होंने यह भी बताया कि भारत में सकल एफडीआई प्रवाह वित्त वर्ष 2024-25 में $81 बिलियन रहा, जो पिछले वर्ष की तुलना में 14% की वृद्धि है, और भारत अभी भी शीर्ष 5 वैश्विक एफडीआई गंतव्यों में शामिल है ।
विशेषज्ञों का मानना है कि नेट एफडीआई में गिरावट का एक कारण भारतीय कंपनियों द्वारा विदेशों में निवेश में वृद्धि और विदेशी निवेशकों द्वारा मुनाफा निकालकर पुनः निवेश न करना हो सकता है। हालांकि, यह भी सच है कि सकल एफडीआई प्रवाह में वृद्धि हुई है, जो भारत की आर्थिक स्थिति में विदेशी निवेशकों के विश्वास को दर्शाता है।
इस मुद्दे पर राजनीतिक बहस के बीच, यह स्पष्ट है कि भारत में निवेश के माहौल को और अधिक पारदर्शी और स्थिर बनाने की आवश्यकता है, ताकि विदेशी और घरेलू दोनों निवेशकों का विश्वास बना रहे।