सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक और सख्त निर्णय लेते हुए आंध्र प्रदेश के एक डिप्टी कलेक्टर को पदावनति कर तहसीलदार के पद पर भेजने का आदेश दिया है। यह कार्रवाई इसलिए की गई क्योंकि उन्होंने तहसीलदार रहते हुए आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के स्पष्ट निर्देशों की अवहेलना करते हुए गुंटूर ज़िले में झुग्गीवासियों की झोपड़ियों को जबरन गिरवा दिया था।

जस्टिस बीआर गवई और एजी मसीह की पीठ ने यह आदेश पारित करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता (डिप्टी कलेक्टर) को न केवल उनके वर्तमान पद से पदावनत किया जाए बल्कि उन्हें चार हफ्तों के भीतर एक लाख रुपये का जुर्माना भी जमा करना होगा।

पृष्ठभूमि: कोर्ट की अवमानना का मामला

गुंटूर ज़िले में कुछ झुग्गीवासी सरकारी ज़मीन पर वर्षों से बसे हुए थे और उन्होंने हाउस साइट पट्टों के लिए आवेदन किया था। आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट की एकल पीठ ने 2013 में आदेश दिया था कि जब तक उनके आवेदन का निर्णय नहीं हो जाता, उन्हें उनकी ज़मीन से न हटाया जाए।

इसके बावजूद, संबंधित तहसीलदार (अब डिप्टी कलेक्टर) ने दिसंबर 2013 और जनवरी 2014 में भारी पुलिस बल के साथ वहां की झुग्गियां गिरवा दीं। इस कार्रवाई को कोर्ट ने “निर्देशों की जानबूझकर अवहेलना” बताया और हाईकोर्ट ने उन्हें दो महीने की सादी कैद और ₹2000 के जुर्माने की सजा सुनाई थी।

सुप्रीम कोर्ट में याचिका और नरमी की अपील

याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की, जिसमें वरिष्ठ अधिवक्ता देवाशीष भरूका ने यह दलील दी कि अगर उन्हें जेल भेजा गया तो वह नौकरी से बर्खास्त हो जाएंगे और उनके परिवार, विशेष रूप से 11वीं और 12वीं में पढ़ रहे बच्चों का भविष्य खतरे में पड़ जाएगा।

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने दो टूक कहा कि यदि याचिकाकर्ता मानवीय व्यवहार की अपेक्षा करता है तो उसे खुद भी मानवीय ढंग से व्यवहार करना चाहिए था। अदालत ने स्पष्ट किया कि कानून का सम्मान सर्वोपरि है और किसी भी अधिकारी को कोर्ट के आदेशों की अवहेलना करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

अदालत ने दी अंतिम चेतावनी

जब कोर्ट ने याचिकाकर्ता को जेल से बचने के लिए पदावनति स्वीकारने का विकल्प दिया, तब उन्होंने इंकार कर दिया, जिससे अदालत ने नाराज़गी जताई। आखिरकार, वरिष्ठ अधिवक्ता ने समय लेकर याचिकाकर्ता को मनाया और अंत में कोर्ट ने उसे तहसीलदार के पद पर वापस भेजने का आदेश दिया।

न्यायालय ने आदेश में कहा:

“यदि याचिकाकर्ता को दो महीने की सजा दी जाती है तो वह सेवा से बर्खास्त हो जाएगा, जिससे उसके परिवार की आजीविका संकट में पड़ जाएगी। इसलिए हम सजा में नरमी बरतते हुए पदावनति का आदेश दे रहे हैं, जिससे कानून का संदेश भी जाए और परिवार को भी राहत मिले।”

कानून और लोकतंत्र का मूल स्तंभ

अंत में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब कोई संवैधानिक न्यायालय या अन्य कोई न्यायालय कोई आदेश देता है, तो हर अधिकारी, चाहे वह कितनी भी ऊंची हैसियत रखता हो, को उसका पालन करना ही चाहिए। अदालत के आदेशों की अवहेलना लोकतंत्र की नींव को कमजोर करती है।

यह फैसला न केवल अधिकारियों के लिए चेतावनी है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि न्यायालय गरीबों और वंचितों के अधिकारों की रक्षा के लिए सतर्क है।

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