अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में भारी गिरावट दर्ज की गई है। मौजूदा समय में कच्चा तेल मात्र 35 रुपये प्रति लीटर के आसपास बिक रहा है, जो बीते चार वर्षों में सबसे बड़ी गिरावट मानी जा रही है। इसके बावजूद भारत में पेट्रोल की कीमत 98 से 105 रुपये प्रति लीटर के बीच बनी हुई है।

इस विरोधाभास को लेकर अब मोदी सरकार पर सवाल खड़े हो रहे हैं। विपक्षी दलों और आम जनता का कहना है कि सरकार जानबूझकर अंतरराष्ट्रीय बाजार में आई राहत का फायदा जनता को नहीं दे रही। जब तेल की कीमतें बढ़ती हैं, तो सरकार कहती है कि “बाजार मजबूर कर रहा है”, लेकिन जब कीमतें घटती हैं, तो जनता को कोई राहत नहीं दी जाती।

महंगाई का चक्रव्यूह

विशेषज्ञों का मानना है कि महंगे पेट्रोल और डीजल से केवल वाहन मालिक ही नहीं, बल्कि आम उपभोक्ता भी प्रभावित होता है। डीजल की ऊंची कीमतों का सीधा असर माल ढुलाई और ट्रांसपोर्ट पर पड़ता है। इसका परिणाम यह होता है कि रोजमर्रा के सामान से लेकर सब्ज़ी और अनाज तक की कीमतें बढ़ जाती हैं।

क्या कहती है सरकार?

सरकार की ओर से अब तक कोई स्पष्ट बयान सामने नहीं आया है कि जब कच्चा तेल सस्ता हो गया है, तो पेट्रोल-डीजल की कीमतें कम क्यों नहीं हो रहीं। वित्तीय विशेषज्ञों का मानना है कि पेट्रोलियम उत्पादों पर लगने वाले भारी टैक्स और एक्साइज ड्यूटी सरकार की आय का एक बड़ा स्रोत बन चुके हैं।

जनता का दर्द

पेट्रोल पंप पर खड़े एक उपभोक्ता ने कहा, “हमारी जेब कट रही है, लेकिन सरकार को फर्क नहीं पड़ रहा। अगर कच्चा तेल इतना सस्ता हो गया है, तो हमें राहत क्यों नहीं मिल रही?”

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