विशेष सीबीआई अदालत ने शनिवार को पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय की पूर्व न्यायाधीश, न्यायमूर्ति निर्मल यादव, को 2008 के बहुचर्चित “कैश एट जज डोर” मामले में सभी आरोपों से बरी कर दिया। यह मामला उस समय सामने आया था जब न्यायमूर्ति यादव पर आरोप लगा था कि उनके लिए भेजी गई ₹15 लाख की नकदी गलती से न्यायमूर्ति निर्मलजीत कौर के आवास पर पहुंच गई थी।
13 अगस्त 2008 को, चंडीगढ़ में न्यायमूर्ति निर्मलजीत कौर के आवास पर एक पैकेट में ₹15 लाख की नकदी पहुंची, जिसे उन्होंने तुरंत पुलिस को सूचित किया। जांच में पता चला कि यह राशि वास्तव में न्यायमूर्ति निर्मल यादव के लिए थी। आरोप था कि यह धनराशि पंचकूला में 2007 की एक संपत्ति विवाद में पक्षपातपूर्ण निर्णय के बदले दी गई थी, जिसमें हरियाणा के तत्कालीन अतिरिक्त महाधिवक्ता संजीव बंसल, संपत्ति डीलर राजीव गुप्ता और दिल्ली के होटल व्यवसायी रविंदर सिंह भसीन भी शामिल थे।
न्यायालय का निर्णय:
विशेष सीबीआई न्यायाधीश अल्का मलिक ने शनिवार को इस मामले में निर्णय सुनाया, जिसमें न्यायमूर्ति यादव को सभी आरोपों से मुक्त कर दिया गया। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपों को साबित करने में असफल रहा, जिसके परिणामस्वरूप न्यायमूर्ति यादव को बरी किया गया।
मामले की समयरेखा:
• अगस्त 2008: चंडीगढ़ पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज की और बाद में मामला सीबीआई को सौंपा गया।
• 2009: सीबीआई ने क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की, जिसे अदालत ने अस्वीकार कर पुनः जांच का आदेश दिया।
• 2011: सीबीआई ने आरोप पत्र दाखिल किया, जिसमें न्यायमूर्ति यादव को आरोपी बनाया गया।
• 2014: अदालत ने आरोप तय किए और मुकदमा शुरू हुआ।
• मार्च 2025: 17 साल की लंबी सुनवाई के बाद, अदालत ने न्यायमूर्ति यादव को बरी कर दिया।
न्यायमूर्ति यादव ने अदालत के फैसले का स्वागत किया और कहा कि सत्य की जीत हुई है। उन्होंने न्यायपालिका में अपने विश्वास को दोहराया और कहा कि यह निर्णय उनके लिए न्याय का प्रतीक है।
यह मामला न्यायपालिका में पारदर्शिता और जवाबदेही की आवश्यकता को उजागर करता है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह के मामलों में त्वरित और निष्पक्ष जांच से ही न्याय प्रणाली में जनता का विश्वास बना रहेगा।