सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड के चर्चित अंकिता भंडारी हत्याकांड में सीबीआई जांच की मांग को खारिज कर दिया है। यह फैसला वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंसाल्विस द्वारा दायर याचिका पर आया, जिसमें उन्होंने मामले की निष्पक्ष जांच के लिए सीबीआई को शामिल करने की अपील की थी। इस फैसले से अंकिता के परिजनों और न्याय की उम्मीद लगाए बैठे लोगों को गहरा झटका लगा है।
क्या था पूरा मामला?
अंकिता भंडारी एक 19 वर्षीय युवती थी, जो उत्तराखंड के ऋषिकेश के पास स्थित वनंत्रा रिजॉर्ट में रिसेप्शनिस्ट के रूप में काम कर रही थी। सितंबर 2022 में उसकी हत्या कर दी गई थी। इस मामले में रिजॉर्ट के मालिक पुलकित आर्य को मुख्य आरोपी बनाया गया था, जो एक प्रभावशाली राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखता है।
आरोप है कि पुलकित आर्य और उसके सहयोगियों ने अंकिता पर “विशेष सेवाएं” (VIP गेस्ट के लिए अनैतिक मांगें) देने का दबाव बनाया था। अंकिता के मना करने पर उसकी बेरहमी से हत्या कर दी गई और उसका शव नहर में फेंक दिया गया।
पुलिस जांच पर सवाल क्यों उठे?
इस हत्याकांड की जांच शुरू से ही विवादों में रही। अंकिता के परिजनों और कई सामाजिक संगठनों ने पुलिस की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाए। अधिवक्ता कॉलिन गोंसाल्विस ने अपनी याचिका में बताया कि:
1.व्हाट्सएप चैट को चार्जशीट से हटाया गया: अंकिता ने अपने दोस्त पुष्पदीप से व्हाट्सएप पर बात की थी, जिसमें उसने बताया था कि एक VIP होटल में आ रहा है और उससे अनुचित मांगें कर रहा है। इस चैट को पुलिस ने चार्जशीट में शामिल नहीं किया।
2.स्विमिंग पूल में हुई बातचीत को नजरअंदाज किया गया: अंकिता के दोस्त और VIP के सहयोगी के बीच हुई बातचीत का भी चार्जशीट में जिक्र नहीं किया गया, जबकि पुष्पदीप ने फोटो पहचान के जरिए व्यक्ति की पुष्टि की थी।
3.मुख्य आरोपी का सहयोगी संदिग्ध गतिविधियों के बावजूद बच निकला: पुलिस ने पुलकित आर्य के एक सहयोगी को गिरफ्तार नहीं किया, जबकि वह अपने बैग में नकदी और हथियार लेकर घूम रहा था।
4.अंकिता के आखिरी पलों को नजरअंदाज किया गया: होटल कर्मचारी अभिनव ने बताया था कि अंकिता अपनी हत्या से पहले अपने कमरे में रो रही थी, लेकिन पुलिस ने इस गवाही को चार्जशीट में शामिल नहीं किया।
5.फोरेंसिक रिपोर्ट गायब: जिस कमरे में अंकिता रह रही थी, उसकी फोरेंसिक रिपोर्ट कभी भी चार्जशीट में संलग्न नहीं की गई।
6.सबूतों को नष्ट किया गया: जिस होटल में अंकिता रुकी थी, उसे स्थानीय विधायक और उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री के आदेश पर जल्दबाजी में ध्वस्त कर दिया गया, जिससे महत्त्वपूर्ण साक्ष्य मिट गए।
7.सीसीटीवी फुटेज गायब: होटल के सीसीटीवी फुटेज से VIP और उसके साथियों की पहचान की जा सकती थी, लेकिन इसे यह कहकर नष्ट कर दिया गया कि कैमरे काम नहीं कर रहे थे।
8.गवाहों की गवाही पर ध्यान नहीं दिया गया: कई गवाहों ने बताया कि हत्या से पहले अंकिता डरी हुई थी, लेकिन पुलिस ने इन गवाहों की जांच नहीं की।
9.कॉल डिटेल की जांच अधूरी: पुलिस ने बयान दिया कि अंकिता की कॉल डिटेल से कोई संदिग्ध गतिविधि सामने नहीं आई, लेकिन होटल स्टाफ के कॉल रिकॉर्ड को कभी खंगाला ही नहीं गया।
10.मीडिया में गलत जानकारी दी गई: अभियोजन पक्ष ने एक वीडियो दिखाया, जिसमें अंकिता को आरोपी के साथ मोटरसाइकिल पर दिखाया गया था और कहा गया कि वह किसी परेशानी में नहीं थी। जबकि अंकिता ने उसी समय अपने दोस्त को फोन कर बताया था कि वह बहुत डरी हुई है।
VIP की पहचान छुपाने का प्रयास?
इस मामले में सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि पुलिस और प्रशासन ने VIP की पहचान सार्वजनिक क्यों नहीं की? अंकिता की मां सोनी देवी ने आरोप लगाया कि हत्या में एक बड़े राजनीतिक पदाधिकारी शामिल थे, जो अक्सर अपनी पार्टी के लोगों के साथ होटल में आते थे।
अधिवक्ता कॉलिन गोंसाल्विस का कहना है कि यदि सीबीआई जांच होती, तो VIP की पहचान उजागर हो सकती थी और असली गुनहगार सामने आ सकते थे। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच की मांग को खारिज कर दिया, जिससे यह संभावना धूमिल हो गई।
अब आगे क्या?
अंकिता के परिवार और समाज के कई वर्गों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर निराशा जताई है। सोशल मीडिया पर लोग इस फैसले का विरोध कर रहे हैं और न्याय की मांग कर रहे हैं।
अधिवक्ता कॉलिन गोंसाल्विस का पत्र:
सीबीआई जांच की याचिका खारिज होने के बाद वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंसाल्विस ने एक भावुक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने लिखा:
“मुझे खेद है, अंकिता, कि तुम्हारी हत्या की निष्पक्ष जांच की मांग खारिज कर दी गई और मुख्य अपराधी अभी भी आज़ाद घूम रहे हैं। यह भारत है। यहां आम महिलाओं की ज़िंदगी मायने नहीं रखती। उच्च और शक्तिशाली लोग बार-बार बच निकलते हैं।”
अंकिता भंडारी हत्याकांड केवल एक हत्या नहीं है, बल्कि यह हमारे सिस्टम की खामियों और न्याय की लड़ाई का प्रतीक बन चुका है। इस मामले में VIP की संलिप्तता को लेकर उठे सवालों के जवाब अभी भी नहीं मिले हैं।
अंकिता के परिवार को अब भी न्याय की उम्मीद है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद उनकी उम्मीदें कमजोर पड़ती दिख रही हैं।
अब सवाल यह है कि क्या देश का कानून आम नागरिकों के लिए भी उतना ही सख्त है, जितना प्रभावशाली लोगों के लिए होना चाहिए? या फिर अंकिता का मामला भी उन अनगिनत मामलों की सूची में जुड़ जाएगा, जिनमें न्याय अधूरा रह जाता है?