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हाल ही में बीबीसी की एक रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है कि भारत की एक फ़ार्मास्युटिकल कंपनी ‘एवियो फ़ार्मास्युटिकल्स’ नशीली दवाओं का उत्पादन कर उन्हें अवैध रूप से पश्चिम अफ्रीका के देशों में आपूर्ति कर रही है। इससे वहाँ की युवा पीढ़ी नशे की लत में फँस रही है और कई मामलों में लोगों की जान भी जा रही है। गौरतलब है कि इस दवा पर दुनिया के कई देशों में प्रतिबंध लगा हुआ है, फिर भी यह भारत से पश्चिम अफ्रीका में पहुँच रही है।

मुख्य बिंदु:

•नशीली दवाओं की अवैध आपूर्ति: ‘एवियो फ़ार्मास्युटिकल्स’ पर आरोप है कि वह प्रतिबंधित नशीली दवाओं का उत्पादन कर उन्हें पश्चिम अफ्रीका में अवैध रूप से भेज रही है, जिससे वहाँ गंभीर सामाजिक और स्वास्थ्य संकट उत्पन्न हो रहा है।

•सरकारी निगरानी पर सवाल: इस मामले ने मोदी सरकार की दवा उत्पादन और निर्यात पर निगरानी की क्षमता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह चिंताजनक है कि प्रतिबंधित दवाएँ भारत से बाहर कैसे जा रही हैं।

•नियामक संस्थाओं की भूमिका: केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) की भूमिका पर भी प्रश्नचिह्न लग रहे हैं। बिना उनकी मिलीभगत या लापरवाही के इतने बड़े पैमाने पर अवैध दवाओं का उत्पादन और निर्यात संभव नहीं लगता।

•अन्य कंपनियों की संलिप्तता की संभावना: यह मामला सामने आने के बाद, संभावना है कि अन्य कंपनियाँ भी इसी तरह के अवैध कार्यों में संलिप्त हो सकती हैं। सरकार को इस दिशा में व्यापक जाँच की आवश्यकता है।

सरकारी प्रतिक्रिया:

इस रिपोर्ट के प्रकाश में आने के बाद, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने कहा है कि नकली और अवैध दवाओं पर ‘कतई बर्दाश्त नहीं’ की नीति अपनाई जाएगी। उन्होंने यह भी बताया कि दवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए व्यापक जोखिम आधारित विश्लेषण किया जा रहा है।

यह मामला न केवल भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को प्रभावित करता है, बल्कि देश की दवा नियामक प्रणाली की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाता है। सरकार और संबंधित संस्थाओं को त्वरित और सख्त कार्रवाई करते हुए दोषियों को न्याय के कटघरे में लाना चाहिए, ताकि भविष्य में ऐसे मामलों की पुनरावृत्ति न हो।

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