तमिलनाडु में हाल ही में हुए पुरातात्विक उत्खननों से यह प्रमाणित हुआ है कि इस क्षेत्र में लौह युग की शुरुआत लगभग 5,300 वर्ष पूर्व, यानी 3345 ईसा पूर्व में हुई थी। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने इस महत्वपूर्ण खोज की घोषणा करते हुए बताया कि राज्य में लोहे को गलाने की तकनीक उस समय विकसित की गई थी, जो भारत की प्राचीन धातुकर्म विशेषज्ञता को दर्शाती है।
यह खोज मयिलादुम्पराई में हुए उत्खनन से सामने आई है, जहां से प्राप्त नमूनों की कार्बन डेटिंग से यह निष्कर्ष निकला है। इससे पहले, देश में लोहे के उपयोग के सबसे पुराने प्रमाण 1900-2000 ईसा पूर्व के माने जाते थे, और तमिलनाडु के लिए यह अवधि 1500 ईसा पूर्व मानी जाती थी। नवीनतम साक्ष्य 2172 ईसा पूर्व के हैं, जो इस क्षेत्र में लौह प्रौद्योगिकी की प्राचीनता को और भी पुष्ट करते हैं।
मुख्यमंत्री स्टालिन ने बताया कि इन निष्कर्षों को ‘द एंटिक्विटी ऑफ आयरन’ नामक पुस्तक में संकलित किया गया है, जिसमें राष्ट्रीय स्तर के पुरातत्व विशेषज्ञों की राय शामिल है। उन्होंने यह भी कहा कि तमिलनाडु से एकत्र किए गए नमूनों को विश्लेषण के लिए पुणे और फ्लोरिडा की विश्व-प्रसिद्ध प्रयोगशालाओं में भेजा गया था, जहां से प्राप्त परिणामों की तमिलनाडु पुरातत्व विभाग ने भी पुष्टि की है।
इस खोज के महत्व पर प्रकाश डालते हुए, मुख्यमंत्री ने कहा, “हमने वैज्ञानिक रूप से स्थापित किया है कि लोहा 5,300 साल पहले तमिल क्षेत्र में पेश किया गया था। यह तमिल, तमिल लोगों, तमिलनाडु और तमिल भूमि के लिए बहुत गर्व की बात है। यह तमिलनाडु की ओर से पूरी मानव जाति के लिए एक स्मारकीय योगदान है।”
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी इस खोज की सराहना करते हुए कहा, “भारत की समृद्ध धरोहर दुनिया को प्रेरित करती रहती है। तमिलनाडु में हाल की पुरातात्विक खोजों से 5,300 साल पहले लोहे के उपयोग का पता चला है, जो लौह युग में भारत की प्रारंभिक प्रगति को दर्शाता है। तमिलनाडु के योगदान, साथ ही हमारे देश भर में अनगिनत मील के पत्थर, भारत के नवाचार और एकता को प्रतिबिंबित करते हैं। आइए हम उस भारतीय भावना का जश्न मनाएं जो हर राज्य, समुदाय और आवाज में जीवित है।”
यह खोज न केवल भारत की प्राचीन धातुकर्म विशेषज्ञता को उजागर करती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि तमिलनाडु में नवपाषाण चरण की शुरुआत 2200 ईसा पूर्व से पहले हुई थी। यह निष्कर्ष दिनांकित स्तर से नीचे पाए गए सांस्कृतिक निक्षेपों के अध्ययन पर आधारित है, जो इस क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को प्रमाणित करता है।