राजस्थान में भाजपा सरकार द्वारा 450 सरकारी स्कूलों को बंद करने के फैसले ने राज्य में विवाद खड़ा कर दिया है। इनमें कई बालिका विद्यालय भी शामिल हैं, जिससे छात्राओं को मजबूरन सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन करना पड़ा है। यह कदम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान के उद्देश्यों के विपरीत माना जा रहा है, जो बालिकाओं की शिक्षा और सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के लिए शुरू किया गया था।
स्कूल बंदी का निर्णय और विरोध
पिछले 10 दिनों में, माध्यमिक शिक्षा निदेशक आशीष मोदी ने प्रदेशभर में 260 सरकारी स्कूलों को बंद करने का आदेश जारी किया है। इससे पहले, लगभग 10 दिन पूर्व 190 स्कूलों को बंद किया गया था। बंद किए गए स्कूलों में कई बालिका विद्यालय शामिल हैं, जिनमें छात्राओं की संख्या पर्याप्त होने के बावजूद उन्हें बंद कर अन्य स्कूलों में मर्ज किया गया है। उदाहरण के लिए, बीकानेर में भाजपा विधायक अंशुमान सिंह भाटी के घर के सामने स्थित सरकारी बालिका सीनियर सेकेंडरी स्कूल, जहां लगभग 300 छात्राएं पढ़ रही थीं, को बंद कर दिया गया है।
कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने इस फैसले की कड़ी आलोचना करते हुए कहा, “पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने प्रदेश में एक भी बालिका विद्यालय को बंद नहीं किया, जबकि भाजपा सरकार 1 साल में 450 स्कूलों को बंद कर चुकी है।” उन्होंने इसे गरीब और कमजोर वर्ग के बच्चों को शिक्षा के अधिकार से वंचित करने का प्रयास बताया।
‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान की प्रासंगिकता
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 जनवरी 2015 को ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान की शुरुआत की थी, जिसका उद्देश्य बालिकाओं की शिक्षा सुनिश्चित करना और लिंगानुपात में सुधार लाना था। इस अभियान के 10 वर्ष पूरे होने पर प्रधानमंत्री ने कहा था कि यह पहल लैंगिक पूर्वाग्रहों पर काबू पाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।
राजस्थान में सरकारी स्कूलों, विशेषकर बालिका विद्यालयों, की बंदी से ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान के उद्देश्यों पर प्रश्नचिह्न लग गया है। छात्राओं के विरोध प्रदर्शन और राजनीतिक दलों की आलोचना के बीच, यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सरकार इस मुद्दे पर क्या रुख अपनाती है और क्या बंद किए गए स्कूलों को पुनः खोलने पर विचार किया जाएगा।