अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) एस.वी. राजू ने शुक्रवार (17 जनवरी) को सुप्रीम कोर्ट में चौंकाने वाला बयान दिया, जिसमें उन्होंने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा दायर एक काउंटर हलफनामे को “अधकचरा” और “संदिग्ध” बताया।
जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस उज्जल भुयान की पीठ, जो मनी लॉन्ड्रिंग मामले (PMLA) में एक जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी, को एएसजी ने बताया कि ईडी का यह हलफनामा बिना उचित जांच-पड़ताल और अनुमोदन के दायर किया गया।
एएसजी राजू ने कहा, “मेरे विभाग के संबंध में कुछ गड़बड़ है। बिना परामर्श और बिना तथ्यों को जांचे-परखे एक अधकचरा हलफनामा दायर कर दिया गया, जबकि हम अभी तक इस मामले में अपनी उपस्थिति भी दर्ज नहीं कर पाए थे।”
इस पर, याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मीनाक्षी अरोड़ा ने पलटवार करते हुए कहा कि यह आरोपी को जेल में बनाए रखने की रणनीति लगती है। एएसजी ने इसके जवाब में कहा, “मैंने कल ही पाया कि हलफनामा बिना जांचे-परखे और बिना जांच एजेंसी से विचार-विमर्श किए दायर कर दिया गया।”
न्यायमूर्ति ओका ने जताई हैरानी
पीठ ने एएसजी से पूछा, “आपके एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड (एओआर) ने हलफनामा दाखिल किया होगा।” इस पर एएसजी ने सफाई दी कि इसमें एओआर की कोई गलती नहीं है, क्योंकि हलफनामा ईडी से आया था। उन्होंने यह भी बताया कि उन्होंने ईडी निदेशक को इस मामले में विभागीय जांच शुरू करने के निर्देश दिए हैं।
एएसजी ने कहा, “मुझे खुद जांच करनी है। मैंने निदेशक को निर्देश दिया है कि संबंधित अधिकारी आज अदालत में उपस्थित हो। यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि विभाग में इस तरह की गलतियां दोबारा न हों।”
न्यायमूर्ति ओका का सवाल
हालांकि, पीठ एएसजी के तर्कों से पूरी तरह संतुष्ट नहीं दिखी। न्यायमूर्ति ओका ने कहा, “यदि एओआर ने ईडी के निर्देश पर हलफनामा दाखिल किया है, तो अब ईडी यह कैसे कह सकती है कि यह बिना अनुमोदन दायर हुआ? यह एक गंभीर मामला है।”
एएसजी ने जवाब में कहा, “यह बिना निर्देश नहीं, बल्कि बिना सत्यापन के दायर हुआ है। ईडी में कुछ गड़बड़ है, जिसे मैं स्वीकार करता हूं।”
मामले की अगली सुनवाई मंगलवार को
पीठ ने इस मामले को मंगलवार तक के लिए स्थगित कर दिया और कहा कि एओआर को अदालत में उपस्थित रहना चाहिए। न्यायमूर्ति ओका ने टिप्पणी की, “यह मुद्दा भी काफी गंभीर है, इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।”
इस घटनाक्रम के बाद ईडी के कामकाज और विभागीय प्रक्रियाओं पर सवाल उठ रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट में इस तरह का आचरण एक प्रमुख जाँच संस्था के द्वारा किये जाना एक गंभीर मुद्दा है । अब यह देखना दिलचस्प होगा कि विभागीय जांच में क्या सामने आता है और सुप्रीम कोर्ट इस विषय पर क्या रुख़ अपनाता है ।