ग्रेट निकोबार मेगा-प्रोजेक्ट के कारण शोम्पेन जनजाति के अस्तित्व पर मंडराते खतरे को लेकर 13 देशों के 39 प्रतिष्ठित विद्वानों ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखकर इस परियोजना को तत्काल रद्द करने की अपील की है। इन विद्वानों ने इसे “शोम्पेन जनजाति के लिए मौत का फरमान” और “अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नरसंहार जैसा अपराध” करार दिया है। यह चिट्ठी पिछले साल लिखी गई है जिससे किसी भी प्रमुख हिंदी मिडिया घराने ने अपने समाचार माध्यमों में प्रकाशित करना उचित नहीं समझा।
शोम्पेन जनजाति को विलुप्त होने का खतरा
पत्र में विद्वानों ने कहा है कि शोम्पेन जनजाति, जो आत्मनिर्भर शिकारी-संग्राहक हैं, बाहरी दुनिया के संक्रमणों के प्रति अत्यंत संवेदनशील हैं। इस परियोजना के चलते बाहरी लोगों के संपर्क में आने से शोम्पेन जनजाति के पूरे समुदाय की जनसंख्या में भारी गिरावट हो सकती है, जो अंततः उनके संपूर्ण विनाश का कारण बन सकती है।
विद्वानों की मांग
विद्वानों ने पत्र में लिखा, “शोम्पेन जनजाति को बचाने का एकमात्र उपाय यही है कि ग्रेट निकोबार मेगा-प्रोजेक्ट को तुरंत रद्द कर दिया जाए।” उन्होंने सरकार और अन्य संबंधित अधिकारियों से इस परियोजना को रोकने का आग्रह किया है।
प्रमुख हस्ताक्षरकर्ता
इस पत्र पर दुनिया भर के जानी-मानी हस्तियों ने हस्ताक्षर किए हैं, जिनमें शामिल हैं:
•डॉ. मार्क लेविन, यूनिवर्सिटी ऑफ साउथैम्पटन
•प्रो. नंदिनी सुंदर, दिल्ली विश्वविद्यालय
•प्रो. रज सेगल, स्टॉकटन विश्वविद्यालय
•प्रो. टॉनी कुशनर, यूनिवर्सिटी ऑफ साउथैम्पटन
•प्रो. माइकल रोथबर्ग, यूसीएलए
और अन्य 34 प्रतिष्ठित शिक्षाविद और शोधकर्ता।
राष्ट्रपति मुर्मू से अपील
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, जो स्वयं एक आदिवासी समुदाय से हैं, से अपील करते हुए विद्वानों ने कहा है कि यह परियोजना न केवल शोम्पेन जनजाति के लिए घातक साबित होगी, बल्कि इसे लागू करना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकार उल्लंघन और नरसंहार के समान होगा।
सरकार पर सवाल
ग्रेट निकोबार मेगा-प्रोजेक्ट के विरोध में यह पत्र उस समय सामने आया है जब पर्यावरणविद और जनजातीय अधिकार कार्यकर्ता इस परियोजना को लेकर पहले से ही चिंतित हैं।
क्या है ग्रेट निकोबार परियोजना?
इस परियोजना का उद्देश्य ग्रेट निकोबार द्वीप पर बुनियादी ढांचे का विकास करना है, जिसमें बंदरगाह, हवाई अड्डा और औद्योगिक क्षेत्रों का निर्माण शामिल है। लेकिन पर्यावरणविदों और मानवाधिकार संगठनों का मानना है कि यह परियोजना वहां की जैव विविधता और स्थानीय जनजातियों के अस्तित्व के लिए खतरा है।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
इस पत्र ने भारत सरकार को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी आलोचना के घेरे में ला दिया है। मानवाधिकार और पर्यावरण संरक्षण से जुड़े कई संगठनों ने इस परियोजना पर सवाल उठाए हैं।
सरकार को अब यह तय करना होगा कि विकास की इस परियोजना को आगे बढ़ाया जाए या शोम्पेन जनजाति और निकोबार द्वीपसमूह की पारिस्थितिकी को बचाने के लिए इसे रद्द कर दिया जाए।