मद्रास हाई कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि किसी सार्वजनिक सेवक की सेवा पुस्तिका को सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम की धारा 8 के तहत पूरी तरह से गोपनीय नहीं रखा जा सकता। हालांकि, अदालत ने यह भी कहा कि इसमें कुछ तार्किक प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।
न्यायमूर्ति सी.वी. कार्तिकेयन ने अपने आदेश में कहा कि सेवा पुस्तिका में मौजूद संपत्ति और देनदारियों की जानकारी व्यक्तिगत नहीं मानी जा सकती और इसे सार्वजनिक जांच से बचाया नहीं जा सकता। अदालत ने कहा कि सार्वजनिक सेवकों की संपत्ति और देनदारियों की जानकारी का खुलासा करना जरूरी है, लेकिन इसमें ऐसे विवरण नहीं होने चाहिए जो उनके करियर को नुकसान पहुंचा सकें।
क्या कहा अदालत ने?
अदालत ने कहा, “संदेह नहीं कि सार्वजनिक सेवकों की संपत्ति और देनदारियों का खुलासा करना आवश्यक है, लेकिन इस पर तार्किक प्रतिबंध होना चाहिए। सेवा में शामिल होने की तारीख, प्रमोशन की जानकारी और उनके कार्य का विवरण जैसी जानकारियां दी जा सकती हैं।”
इसके अलावा, अदालत ने कहा कि सेवा पुस्तिका में उपलब्ध सामग्रियों की जांच जरूरी है और यदि किसी जानकारी का खुलासा नहीं किया जा सकता, तो इसके लिए उचित कारण दिया जाना चाहिए।
मामले का विवरण:
यह फैसला उस याचिका पर सुनवाई के दौरान आया, जिसमें याचिकाकर्ता एम. तमिलसेल्वन ने उत्तरी चेन्नई के राजस्व विभाग के अधिकारी द्वारा सूचना देने से इनकार करने को चुनौती दी थी। याचिकाकर्ता ने जलाशय परियोजना उप-मंडल, कृष्णागिरी तालुक के एक सहायक अभियंता की अनुपातहीन संपत्ति से संबंधित जानकारी मांगी थी। इसके अलावा, उन्होंने एक पंचायत सचिव की सेवा पुस्तिका से संबंधित जानकारी भी मांगी थी।
अधिकारी ने जानकारी देने से इनकार करते हुए कहा कि यह धारा 8 के तहत संरक्षित है। अदालत ने इसे अस्वीकार्य बताते हुए कहा कि सार्वजनिक सेवक को सार्वजनिक जीवन जीने के लिए तैयार रहना चाहिए और उसकी सेवा से संबंधित जानकारी सार्वजनिक की जा सकती है।
फैसले के निर्देश:
अदालत ने इस मामले को जिला कलेक्टर को पुनर्विचार के लिए भेजते हुए निर्देश दिया कि वह इस अपील पर कानून के अनुसार प्रक्रिया का पालन करते हुए दो महीने के भीतर निर्णय लें।