Advocate Mehmood Pracha

केंद्र सरकार ने शुक्रवार को 1961 के चुनाव आचरण नियमों (Conduct of Election Rules) में संशोधन किया है, जिसके बाद अब सभी चुनाव संबंधी दस्तावेज़ जनता के लिए उपलब्ध नहीं होंगे।

पहले के नियम 93(2)(a) के तहत, यह कहा गया था कि “चुनाव से संबंधित सभी अन्य दस्तावेज़ सार्वजनिक निरीक्षण के लिए खुले रहेंगे।” संशोधित नियम में अब कहा गया है कि “चुनाव से संबंधित वे दस्तावेज़, जो इन नियमों में निर्दिष्ट हैं, केवल वही सार्वजनिक निरीक्षण के लिए खुले रहेंगे।”

यह बदलाव कानून और न्याय मंत्रालय द्वारा चुनाव आयोग के साथ परामर्श के बाद अधिसूचित किया गया है। इसके अनुसार, अब केवल उन्हीं दस्तावेज़ों को सार्वजनिक रूप से देखा जा सकेगा, जो चुनाव आचरण नियमों में स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट किए गए हैं।

अदालतों पर भी लागू होगा प्रतिबंध

संशोधन के बाद, अदालतें भी चुनाव आयोग को यह निर्देश नहीं दे सकतीं कि वह सभी चुनाव संबंधी दस्तावेज़ जनता को उपलब्ध कराए।

यह कदम 9 दिसंबर को पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए एक आदेश के कुछ दिनों बाद आया है। उच्च न्यायालय ने हरियाणा विधानसभा चुनाव के दौरान एक मतदान केंद्र के वीडियो, सुरक्षा कैमरे की फुटेज और वोटिंग से संबंधित दस्तावेज़ों को अधिवक्ता महमूद प्राचा को उपलब्ध कराने का निर्देश दिया था।

चुनाव आयोग का पक्ष

चुनाव आयोग के एक अधिकारी ने कहा, “हमें विभिन्न प्रकार के आवेदन मिलने लगे थे, जिनमें कुछ RTI (सूचना का अधिकार) के माध्यम से थे। इनमें मतदान केंद्रों की रैंडम सीसीटीवी फुटेज और अन्य दस्तावेज़ों की मांग की गई थी। हम सार्वजनिक निरीक्षण को नियमित करने की योजना बना रहे थे। उच्च न्यायालय के आदेश के बाद इन नियमों में संशोधन किया गया है।”

प्राचा का बयान

विकास पर प्रतिक्रिया देते हुए, महमूद प्राचा ने कहा, “लोकतंत्र और बाबासाहेब के संविधान को बचाने के लिए हमें असमान परिस्थितियों में लड़ने को मजबूर किया जा रहा है। मनुवादी ताकतें हमेशा से अम्बेडकरवादियों को दबाने के लिए अनैतिक और अनुचित तरीकों का इस्तेमाल करती रही हैं। लेकिन हमारे पास भी अपनी कानूनी रणनीतियां हैं, जिनसे हम इन अलोकतांत्रिक और फासीवादी ताकतों को हराएंगे।”

चुनाव आयोग ने किया था विरोध

चुनाव आयोग ने उच्च न्यायालय में प्राचा की याचिका का विरोध करते हुए तर्क दिया था कि प्राचा अक्टूबर में हुए विधानसभा चुनावों में उम्मीदवार नहीं थे, इसलिए वे इन दस्तावेज़ों की मांग नहीं कर सकते।

हालांकि, उच्च न्यायालय ने प्राचा की इस दलील को स्वीकार किया कि उम्मीदवार और अन्य व्यक्तियों के बीच केवल यह अंतर है कि चुनाव से संबंधित दस्तावेज़ उम्मीदवारों को निःशुल्क दिए जाते हैं, जबकि अन्य व्यक्तियों को शुल्क भुगतान के आधार पर ये दस्तावेज़ दिए जा सकते हैं। अदालत ने आयोग को छह सप्ताह के भीतर सभी आवश्यक दस्तावेज़, जिनमें फॉर्म 17सी के दोनों भाग शामिल हैं, उपलब्ध कराने का निर्देश दिया था।

विवाद और लोकतंत्र पर असर

यह संशोधन लोकतंत्र, पारदर्शिता और चुनाव प्रक्रिया की निगरानी पर गंभीर सवाल खड़े करता है। आलोचकों का कहना है कि यह कदम चुनाव संबंधी जानकारी तक जनता की पहुंच को सीमित करता है, जिससे चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता प्रभावित हो सकती हैं ।सवाल यह भी खड़ा होता है आख़िर सरकार छुपाना क्या चाहती?

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