भारतीय मुद्रा रुपये की कीमत पहली बार डॉलर के मुकाबले 85 के स्तर से नीचे गिर गई है। आर्थिक विशेषज्ञ इसे देश की आर्थिक स्थिति के लिए चिंताजनक संकेत मान रहे हैं।

रुपये की गिरावट का मुख्य कारण जीडीपी ग्रोथ की कमी, विदेशी निवेश की घटती दर, बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी में इजाफा और आयात-निर्यात में बढ़ते असंतुलन को बताया जा रहा है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने रुपये को स्थिर करने के लिए हस्तक्षेप करते हुए बाजार में भारतीय मुद्रा की आपूर्ति बढ़ाई, लेकिन यह प्रयास भी असफल साबित हुआ।

2014 से अब तक का सफर

2014 में जब नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद संभाला था, उस समय रुपये की कीमत 59 प्रति डॉलर थी। उस समय नरेंद्र मोदी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर हमला बोलते हुए रुपये की गिरावट को प्रधानमंत्री की गरिमा के ह्रास से जोड़ा था। आज, रुपये की ऐतिहासिक गिरावट पर विपक्ष ने प्रधानमंत्री मोदी की चुप्पी पर सवाल उठाए हैं।

आर्थिक संकट के संकेत

विश्लेषकों का कहना है कि देश की अर्थव्यवस्था लगातार दबाव में है। बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी ने आम आदमी की कमर तोड़ दी है, जबकि विदेशी निवेशकों का भरोसा भी डगमगाने लगा है। आयात-निर्यात के असंतुलन ने चालू खाता घाटे (Current Account Deficit) को और बढ़ा दिया है।

विपक्ष का हमला

कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने रुपये की इस गिरावट पर सरकार को घेरते हुए आर्थिक कुप्रबंधन का आरोप लगाया है। चंद उद्योगपतियों के के फायदे के लिए बनाई गई आर्थिक नीतियों का ख़ामियाज़ा जनता को भुगतना पड़ रहा है । कांग्रेस नेता ने कहा, “प्रधानमंत्री मोदी को बताना चाहिए कि रुपये की गिरावट का जिम्मेदार कौन है। जब वह विपक्ष में थे, तो रुपये की स्थिति पर सवाल उठाते थे, अब क्या वह अपनी जिम्मेदारी स्वीकार करेंगे?”

रुपया आज अब तक के सबसे निचले स्तर — 85 को पार कर चुका है। हमारा Trade Deficit अब सबसे अधिक बढ़ गया है। “मार्गदर्शक मंडल”, “ICU”, “रुपया गिरा नहीं, डॉलर बढ़ा” जैसी बातें याद आती हैं… पर असली बात ये है कि अर्थव्यवस्था का बंटाधार करने के बाद भी मोदी सरकार पूरी तरह बेफिक्र व उदासीन दिखेगी, और देश के महत्वपूर्ण मुद्दों से जनता का ध्यान लगातार भटकाने का कुत्सित खेल जारी रखेगी। शायद @narendramodi जी भूल गए कि भारत को “विश्वगुरु” रुपये को मज़बूत रखकर ही बनाया जा सकता। –

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे 

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