भारत की GDP ग्रोथ रेट दो वर्षों के निचले स्तर 5.4% पर आ गई है, जो देश की अर्थव्यवस्था के लिए एक गंभीर चेतावनी है। इस पर विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने केंद्र सरकार की नीतियों को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था तब तक प्रगति नहीं कर सकती जब तक इसका लाभ केवल कुछ चुनिंदा अरबपतियों तक सीमित है और किसान, मजदूर, मध्यम वर्ग और गरीब तबके आर्थिक समस्याओं से जूझ रहे हैं।

आंकड़ों की चिंताजनक तस्वीर:

1. खुदरा महंगाई: महंगाई दर 14 महीने के उच्चतम स्तर 6.21% पर पहुंच चुकी है। आलू और प्याज की कीमतें पिछले साल की तुलना में 50% तक बढ़ गई हैं।

2. रुपया कमजोर: भारतीय रुपया अपने सबसे निचले स्तर 84.50 पर आ गया है।

3. बेरोजगारी: देश में बेरोजगारी 45 साल का रिकॉर्ड तोड़ चुकी है।

4. आमदनी और मांग में गिरावट:

• मजदूरों, छोटे व्यापारियों और कर्मचारियों की आय ठहर गई है या घट गई है।

• 10 लाख से कम कीमत की कारों की बिक्री में हिस्सेदारी 2018-19 के 80% से घटकर 50% हो गई है।

• सस्ते घरों की बिक्री में हिस्सेदारी पिछले साल 38% से घटकर 22% रह गई है।

5. कॉरपोरेट टैक्स में कमी: कॉरपोरेट टैक्स का हिस्सा पिछले 10 वर्षों में 7% कम हुआ है, जबकि आम नागरिकों पर टैक्स का भार 11% बढ़ा है।

6. मैन्युफैक्चरिंग का गिरता हिस्सा: नोटबंदी और GST के कारण मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का योगदान 50 साल के न्यूनतम स्तर 13% पर पहुंच गया है।

राहुल गांधी ने केंद्र सरकार की नीतियों को “अरबपतियों के लिए फायदेमंद और आम जनता के लिए नुकसानदायक” करार दिया। उन्होंने कहा कि अर्थव्यवस्था को एक नई दिशा और सोच की जरूरत है। उन्होंने सुझाव दिया कि छोटे और मझोले व्यवसायों को मजबूत करने और गरीबों के उत्थान के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा “सभी को समान अवसर मिलने चाहिए। तभी भारतीय अर्थव्यवस्था सही मायने में आगे बढ़ेगी।”
राहुल गांधी ने यह भी कहा कि किसानों के लिए MSP की गारंटी, छोटे व्यापारियों को समर्थन, और रोजगार सृजन के लिए नई योजनाएं लागू करनी चाहिए।
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि भारत की अर्थव्यवस्था में गिरावट न केवल वैश्विक कारणों का नतीजा है, बल्कि सरकार की नीतियों का भी प्रभाव है। जीएसटी और नोटबंदी के प्रभावों से मैन्युफैक्चरिंग और MSME सेक्टर उबर नहीं पाए हैं, जिससे रोजगार और आय पर प्रतिकूल असर पड़ा है।

भारत की अर्थव्यवस्था वर्तमान में कई चुनौतियों का सामना कर रही है। अगर समावेशी विकास के लिए ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो इसका असर लंबे समय तक रह सकता है। विपक्ष के इस मुद्दे को उठाने से सरकार पर दबाव बढ़ा है कि वह आर्थिक नीतियों में बदलाव करे और आम ज

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