नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने ‘बुलडोजर न्याय’ पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि केवल आपराधिक आरोपों के आधार पर संपत्तियों का ध्वस्तीकरण करना कानून का दुरुपयोग है और इस पर रोक लगनी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि जो अधिकारी कानून अपने हाथ में लेकर अवैध ध्वस्तीकरण करते हैं, उन्हें जवाबदेह ठहराया जाएगा।
कोर्ट ने कहा कि इस तरह की कार्यवाही परिवार पर “सामूहिक दंड” की तरह है, और अगर कोई विशेष संपत्ति अचानक चुनी जाती है, तो यह संदेह पैदा करता है कि असली उद्देश्य अवैध संरचना हटाना नहीं बल्कि दंडात्मक कार्रवाई है।
जस्टिस बी. आर. गवई और के. वी. विश्वनाथन की खंडपीठ ने याचिकाओं पर निर्णय सुनाते हुए कहा कि ध्वस्तीकरण के लिए पहले नोटिस देना, सुनवाई का मौका देना और पर्याप्त समय प्रदान करना आवश्यक है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि सड़क, रेल लाइन, नदी या सार्वजनिक स्थलों पर अवैध निर्माण के मामलों को छोड़कर यह निर्देश सभी ध्वस्तीकरण मामलों पर लागू होंगे।
जहांगीरपुरी ध्वस्तीकरण पर ब्रिंदा करात का साहसपूर्ण विरोध
16 अप्रैल 2022 को जहांगीरपुरी में अवैध ध्वस्तीकरण के खिलाफ 75 वर्षीय महिला नेता ब्रिंदा करात ने बहादुरी का प्रदर्शन करते हुए 9 बुलडोजर, 14 सिविक टीमें और 1500 पुलिसकर्मियों के सामने अकेले खड़ी होकर इस कार्रवाई को रोका। उस दिन करात ने इस पितृसत्तात्मक समाज को अपनी अदम्य हिम्मत और साहस दिखाया। उनकी इस एकजुटता और प्रतिबद्धता ने दिखाया कि महिला नेतृत्व किस तरह अन्याय के खिलाफ मजबूती से खड़ा हो सकता है।
ब्रिंदा करात ने जहांगीरपुरी में हुए बुलडोजर ध्वस्तीकरण के खिलाफ विरोध जताते हुए इस मामले को सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचाया था। आज सुप्रीम कोर्ट ने “बुलडोजर न्याय” पर एक अहम फैसला सुनाया, जिसमें बिना कानूनी प्रक्रिया के केवल आरोपों के आधार पर संपत्तियों को ध्वस्त करने की निंदा की गई। कोर्ट ने कहा कि यह कानून का उल्लंघन है और किसी भी ध्वस्तीकरण के लिए पहले उचित नोटिस देना और सुनवाई का मौका देना आवश्यक है, जिससे न्यायिक प्रक्रिया का पालन हो सके।