राहुल गांधी का यह लेख भारत में बढ़ते कॉर्पोरेट एकाधिकार और इससे उत्पन्न चुनौतियों पर केंद्रित है। इसमें उन्होंने पूर्व में ईस्ट इंडिया कंपनी के भारत पर नियंत्रण के उदाहरण से शुरुआत की, यह दर्शाने के लिए कि कैसे भारत की आज़ादी को एक राष्ट्र ने नहीं, बल्कि एक निगम ने बाधित किया था। ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारतीय राजाओं और नवाबों के साथ सांठगांठ, रिश्वत और धमकी का सहारा लेकर भारत की अर्थव्यवस्था, बैंकिंग और सूचनातंत्र पर नियंत्रण कायम किया।
आज के भारत में, राहुल गांधी के अनुसार, एक नई तरह के “मोनोपोलिस्ट” (एकाधिकारवादी) वर्ग ने जन्म लिया है, जिनके पास अपार धन और शक्ति है। इन शक्तिशाली व्यवसायों ने सरकारी संस्थानों पर भी नियंत्रण स्थापित कर लिया है, जिससे समानता और न्याय का संतुलन गड़बड़ा गया है। लाखों छोटे व्यवसायों के समाप्त होने और बेरोजगारी बढ़ने के पीछे भी यह एकाधिकारवादी प्रवृत्तियाँ हैं। गांधी का कहना है कि ये समूह “मुकाबले के लिए नहीं हैं”, बल्कि “मैच-फिक्सिंग” के जरिये कामयाबी हासिल कर रहे हैं।
वह उन भारतीय व्यवसायों की प्रशंसा करते हैं, जिन्होंने बिना किसी राजनीतिक सहयोग के, कड़ी मेहनत और ईमानदारी से उद्योग स्थापित किए हैं। उन्होंने लेंसकार्ट के संस्थापक पीयूष बंसल, टीसीएस के संस्थापक एफसी कोहली, और अन्य कंपनियों का उदाहरण देते हुए कहा कि ये कंपनियाँ बिना किसी बाहरी सहारे के अपने-अपने क्षेत्र में सफल रही हैं। गांधी का कहना है कि इन व्यवसायों के लिए समर्थन देना उनकी राजनीति का हिस्सा है और देश के सभी व्यवसायियों को निष्पक्ष अवसर प्रदान करना उनकी प्राथमिकता होगी।
राहुल गांधी का मानना है कि सरकार को केवल कुछ विशेष व्यवसायों का पक्ष नहीं लेना चाहिए और न ही सरकारी एजेंसियों का दुरुपयोग कर व्यापारियों को डराना चाहिए। वह मानते हैं कि इन एकाधिकारवादी समूहों का समर्थन हमारे सामाजिक और राजनीतिक वातावरण की कमियों का परिणाम है। वे सभी व्यवसायों को एक समान अवसर देने के पक्ष में हैं और इसके लिए बैंकिंग प्रणाली में भी बदलाव की वकालत करते हैं।
अंत में, राहुल गांधी ने भारतीय व्यापार जगत के नेताओं से आग्रह किया कि वे भारत के प्रगतिशील व्यापारिक समुदाय को मजबूत बनाएं और सामाजिक दबाव और प्रतिरोध का सहारा लेकर राजनीति में बदलाव लाएँ।