आदिवासी हितों और भाजपा के भ्रष्टाचार आरोपों के बीच मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के लिए बड़ी चुनौती
छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य में परसा खदान से जुड़े पेड़ों की कटाई और फर्जी ग्रामसभा के आधार पर चल रहे विवाद ने राज्य की राजनीति को फिर से चर्चा में ला दिया है। राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग ने इस मामले में यथास्थिति बनाए रखने का आदेश जारी किया है, जिससे आदिवासी हितों और पर्यावरणीय मुद्दों पर एक नई बहस छिड़ गई है।
वर्तमान मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय, जो खुद भी आदिवासी समुदाय से आते हैं, इस समय एक अहम मोड़ पर खड़े हैं। उनके सामने बड़ी चुनौती है कि वे राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग के आदेश को कैसे लागू करवाएं। आयोग ने यह आदेश आदिवासियों के अधिकारों और पर्यावरण की सुरक्षा के लिए जारी किया है, जबकि परसा खदान परियोजना, जिसमें अडानी समूह एमडीओ (माइन डेवलपर और ऑपरेटर) के रूप में जुड़ा है, राज्य की विकास योजनाओं का हिस्सा मानी जा रही है।
चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अपनी ‘गारंटी’ में छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य में हो रहे खनन को भ्रष्टाचार का प्रतीक बताया था। भाजपा ने यह मुद्दा उठाया था कि फर्जी ग्रामसभा के आधार पर परसा खदान के लिए अनुमति दी गई है, जिससे आदिवासियों के अधिकारों का हनन हुआ है और पर्यावरण को भी गंभीर नुकसान हो रहा है।
आज अडानी समूह के एमडीओ (माइन डेवलपर और ऑपरेटर) के तहत चल रहे इस खदान के लिए पेड़ों की कटाई शुरू हो गई, जिससे स्थिति और तनावपूर्ण हो गई है। स्थानीय आदिवासी समुदाय, जो इस परियोजना का लंबे समय से विरोध कर रहा है, ने कटाई का विरोध करने के लिए प्रदर्शन किया। इस विरोध के दौरान पुलिस द्वारा आदिवासियों पर लाठीचार्ज करने का आरोप है, जिससे माहौल और गरम हो गया है।
पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय पर कड़ा प्रहार करते हुए कहा, “एक आदिवासी मुख्यमंत्री आदिवासियों को अपनी पुलिस से पिटवा रहे हैं, उनका खून बहा रहे हैं।” उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि विष्णुदेव साय ‘एक पेड़ मां के नाम’ जैसी योजनाओं का दिखावा कर रहे हैं, जबकि हसदेव अरण्य में पुरखों की विरासत, यानी जंगलों को कटवाया जा रहा है।
बघेल ने याद दिलाया कि छत्तीसगढ़ विधानसभा ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया था कि हसदेव का जंगल नहीं कटने देंगे, और उन्होंने साय पर आरोप लगाया कि वे जंगल कटवाकर विधानसभा की अवमानना कर रहे हैं।
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के सामने राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक सभी स्तरों पर संतुलन बनाए रखने की चुनौती होगी। अगर वे आयोग के आदेश को सख्ती से लागू करवाते हैं, तो इससे आदिवासी समुदाय में उनकी छवि मजबूत होगी, लेकिन साथ ही यह राज्य के निवेश और खनन से जुड़े हितों पर असर डाल सकता है। दूसरी ओर, अगर वे खदान परियोजना को जारी रहने देते हैं, तो आदिवासी समुदाय और पर्यावरण कार्यकर्ताओं में असंतोष बढ़ सकता है, जिससे राजनीतिक तनाव भी उत्पन्न हो सकता है।
अगले कुछ दिन मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की इस मामले में कार्रवाई और निर्णय पर महत्वपूर्ण होंगे, क्योंकि यह मुद्दा राज्य की राजनीति और आदिवासी अधिकारों दोनों पर गहरा प्रभाव डाल सकता है।