श्रीगीरीश जालीहल की रिपोर्ट
नई दिल्ली: 2021 में मोदी सरकार ने गरीबों के लिए सभी सरकारी योजनाओं के तहत केवल आयरन से फोर्टिफाइड चावल देने का आदेश दिया। सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने चेतावनी दी थी कि यह चावल थैलेसीमिया और सिकल सेल एनीमिया जैसी आनुवांशिक बीमारियों से पीड़ित लोगों के लिए खतरनाक हो सकता है। यह चेतावनी विशेष रूप से भारत के आदिवासी समुदाय के लिए गंभीर थी, क्योंकि सरकारी आँकड़े बताते हैं कि लगभग 34% आदिवासी इन बीमारियों से प्रभावित हैं। लेकिन प्रधानमंत्री कार्यालय की मंजूरी के बाद, इस चावल वितरण को रोका नहीं जा सका। सरकार ने केवल एक कमजोर चेतावनी नोटिस लगाया, जिसमें बीमार व्यक्तियों को चावल से बचने की सलाह दी गई थी।
नकली विशेषज्ञ राय पर आधारित निर्णय
सरकार ने ऐसा कदम वैज्ञानिक समिति की एक जल्दबाजी में तैयार की गई रिपोर्ट के आधार पर उठाया। इस विशेषज्ञ राय का एक बड़ा हिस्सा अमेरिकी खाद्य और औषधि प्रशासन (FDA) के एक अज्ञात अधिकारी से की गई अनौपचारिक बातचीत पर आधारित था, जो दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास में कार्यरत थे।
फोर्टिफाइड चावल में सामान्य चावल को पीसकर उसमें आयरन, विटामिन B12 और फोलिक एसिड मिलाया जाता है और फिर उसे मशीन से चावल के दानों के आकार में तैयार किया जाता है। एक फोर्टिफाइड चावल का दाना लगभग 100 सामान्य चावल के दानों के साथ मिलाया जाता है। गंभीर आनुवांशिक बीमारियों से पीड़ित व्यक्तियों को सामान्यतया आयरन से दूर रहने की सलाह दी जाती है क्योंकि इससे उनके शरीर में आयरन की अधिकता हो सकती है, जिससे प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर हो सकती है और यहां तक कि अंग विफलता भी हो सकती है। लेकिन बड़ी संख्या में लाभार्थी यह नहीं जानते कि फोर्टिफाइड चावल में क्या होता है।
जालीहल लिखते हैं कि रिपोर्टिंग के दौरान झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले में हमने सिकल सेल एनीमिया से पीड़ित 20 वर्षीय एक महिला से मुलाकात की, जो फोर्टिफाइड चावल खा रही थी, जबकि उसने कई बार रक्त संक्रमण कराया था। इस क्षेत्र में हमें पता चला कि चावल के बोरे पर चेतावनी लेबल लगाने का पालन भी बहुत कमजोर था। गरीब लोगों के पास सीमित भोजन विकल्प होते हैं, और वे शायद ही चावल के थोक बोरे पर लिखी चेतावनी को ध्यान में रखते हैं। मध्य भारत के आदिवासी बहुल गांवों में फोर्टिफाइड चावल से घबराहट और विरोध देखा गया, जहां इसे कृत्रिम चावल माना गया और “प्लास्टिक चावल” कहा गया।
स्वास्थ्य चेतावनी के मुद्दे
हाल ही में सरकार ने इस योजना के लिए अगले चार वर्षों में 17,082 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं, जबकि प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य ने सार्वजनिक रूप से फोर्टिफाइड चावल की विफलता के बारे में चेतावनी दी थी। यह दावा किया गया कि फोर्टिफाइड चावल से उन लोगों को भी स्वास्थ्य लाभ नहीं मिल रहा है जो इन विशिष्ट बीमारियों से प्रभावित नहीं हैं। इस सबके बावजूद, सरकार ने स्वास्थ्य चेतावनी को समाप्त कर दिया और इस योजना के तहत फोर्टिफाइड चावल का वितरण जारी रखा।
कांग्रेस ने खड़े किए सवाल
कांग्रेस के प्रवक्ता पवन खेड़ा ने मोदी सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि सरकार ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के तहत आयरन-फोर्टिफाइड चावल को अनिवार्य कर एक खतरनाक कदम उठाया है, जबकि थैलेसीमिया और सिकल सेल एनीमिया जैसी आनुवांशिक बीमारियों से पीड़ित लोगों पर इसके दुष्प्रभाव ज्ञात हैं। उन्होंने कहा कि चावल पर स्वास्थ्य चेतावनी हटाकर सरकार ने एक और बड़ी गलती की है।
उन्होंने इस फैसले को ‘लापरवाह और जानलेवा’ बताते हुए कहा कि सरकार गरीबों को आयरन-फोर्टिफाइड चावल देकर उन्हें आयरन ओवरलोडिंग के खतरे में डाल रही है, जिससे अंगों की विफलता और अन्य गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।
खेड़ा ने आरोप लगाया कि इस योजना से भारत के गरीब और कमजोर वर्ग को कोई लाभ नहीं हो रहा है, बल्कि इसका असली लाभ डच कंपनी रॉयल डीएसएम को हो रहा है, जो चावल फोर्टिफिकेशन के लिए आवश्यक माइक्रोन्यूट्रिएंट पाउडर की आपूर्ति करती है।
उन्होंने यह भी कहा कि खुद प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य इस योजना पर सवाल उठा चुके हैं, जिनका कहना है कि फोर्टिफाइड चावल एनीमिया को कम करने में विफल रहा है और इसका समाधान केवल आहार विविधता को बढ़ावा देने में है।
खेड़ा ने आगे कहा, “यह स्पष्ट है कि इस नीति को सार्वजनिक स्वास्थ्य के हित में नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय दाताओं और एनजीओ के हितों के तहत लागू किया गया है, जिन्होंने करोड़ों लोगों की जान जोखिम में डालने वाली इस योजना को आगे बढ़ाया है।”
उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में लंबित याचिकाओं का जिक्र करते हुए कहा कि जबकि कार्यकर्ता स्वास्थ्य चेतावनियों जैसी बुनियादी सुरक्षा उपायों की मांग कर रहे हैं, मोदी सरकार ने पहले ही चेतावनी लेबल हटा दिए हैं, जिससे स्पष्ट होता है कि सरकार को जनता के स्वास्थ्य की कोई परवाह नहीं है।
खेड़ा ने अंत में मांग की कि सरकार इस हानिकारक नीति को तुरंत वापस ले और आयरन-फोर्टिफाइड चावल को PDS से हटाकर एक ऐसी सार्वजनिक स्वास्थ्य नीति विकसित करे जो लोगों की जान बचाए, न कि केवल कॉरपोरेट मुनाफे का समर्थन करे।