सुप्रीम कोर्ट ने आज जेलों में कैदियों के बीच जाति के आधार पर श्रम विभाजन को रोकने के लिए महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश जारी किए। कोर्ट ने कई राज्यों की जेल नियमावलियों में उन प्रावधानों को खारिज कर दिया, जिनके तहत कैदियों को उनकी जाति के आधार पर कार्य सौंपे जाते थे। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि निम्न जातियों के कैदियों को सफाई का काम और उच्च जातियों के कैदियों को खाना बनाने का काम देना सीधा जातिगत भेदभाव है और यह संविधान के अनुच्छेद 15 का उल्लंघन है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जाति के आधार पर श्रम का यह विभाजन अनुच्छेद 14, 15, 17, 21 और 23 का उल्लंघन करता है। कोर्ट ने उत्तर प्रदेश की जेल नियमावली के उस प्रावधान पर भी आपत्ति जताई जिसमें कहा गया था कि केवल वही कैदी जो साधारण कैद की सजा काट रहे हैं, उन्हें तभी कमतर काम दिया जाएगा जब उनकी जाति ऐसे कार्य करने की आदी हो।
चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में कहा, “कोई भी जाति जन्मजात रूप से सफाई या अन्य नीच माने जाने वाले कार्य करने के लिए नहीं होती है। यह अस्पृश्यता का एक रूप है जिसे संविधान के तहत स्वीकार नहीं किया जा सकता।”
सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान जेल नियमावली के उन प्रावधानों पर भी चिंता जताई जो निराश्रित जनजातियों के कैदियों के लिए अलग प्रावधान करते हैं। कोर्ट ने कहा कि कैदियों का जाति के आधार पर अलगाव न केवल भेदभाव को बढ़ावा देता है बल्कि उनके पुनर्वास में भी बाधा डालता है।