सुप्रीम कोर्ट ने तिरुपति प्रसाद में जानवरों की चर्बी इस्तेमाल करने के आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के दावे को सिरे से खारिज किया है। अदालत ने कहा कि मुख्यमंत्री द्वारा प्रेस में इस तरह के गंभीर आरोप लगाने से पहले ठोस सबूतों की आवश्यकता थी, जो इस मामले में नहीं थे।न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और के.वी. विश्वनाथन की पीठ तिरुपति लड्डू विवाद से संबंधित मामलों की सुनवाई कर रही थी, जिनमें कोर्ट की निगरानी में जांच की मांग की गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि मुख्यमंत्री ने किस आधार पर यह निष्कर्ष निकाला कि प्रसाद में जानवरों की चर्बी का इस्तेमाल किया गया है? अदालत ने कहा कि प्रयोगशाला की रिपोर्ट स्पष्ट नहीं है और जांच के बिना इस तरह के बयान देने का कोई औचित्य नहीं था।
कोर्ट ने कहा कि जब जुलाई में रिपोर्ट आ गई थी और जांच पहले ही आदेशित हो चुकी थी, तो मुख्यमंत्री को जांच परिणाम सामने आने से पहले प्रेस में जाने की क्या आवश्यकता थी?
अदालत ने यह भी कहा कि ऐसे गंभीर आरोप लगाने से पहले धार्मिक भावनाओं का सम्मान किया जाना चाहिए था, खासकर जब रिपोर्ट में यह स्पष्ट रूप से नहीं कहा गया कि प्रसाद में मिलावट की गई थी।न्यायमूर्ति गवई ने राज्य से पूछा, “जब आपने SIT के माध्यम से जांच का आदेश दे दिया है, तो प्रेस में जाने की क्या आवश्यकता थी?”
उन्होंने आगे कहा, “जब आप एक संवैधानिक पद पर होते हैं…हम उम्मीद करते हैं कि देवताओं को राजनीति से दूर रखा जाए।”
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि फिलहाल ऐसा कोई सबूत नहीं है जिससे यह साबित हो कि प्रसाद में मिलावटी घी का उपयोग किया गया था, और मुख्यमंत्री का यह बयान पूरी तरह से निराधार था।
अदालत ने यह भी कहा कि संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्तियों को सार्वजनिक रूप से बयान देते समय जिम्मेदारी दिखानी चाहिए, खासकर जब इसका असर जनता की धार्मिक भावनाओं पर हो सकता है।