छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चाम्पा जिले के विधायक ब्यास कश्यप और अकलतरा के विधायक राघवेंद्र सिंह ने हसदेव अरण्य वन क्षेत्र में हो रहे विनाश और खनन पर चिंता जताई है । दोनों विधायकों ने स्पष्ट रूप से कहा है कि हसदेव अरण्य वन क्षेत्र का विनाश सीधे तौर पर जांजगीर जिले को प्रभावित करेगा, और यह क्षेत्र की लाखों हेक्टेयर भूमि को सिंचित करने वाले जल स्रोतों के अस्तित्व पर गंभीर संकट खड़ा कर सकता है।

हसदेव अरण्य छत्तीसगढ़ का एक महत्वपूर्ण वन क्षेत्र है, जो जांजगीर, कोरबा और बिलासपुर जिलों की 6 लाख हेक्टेयर भूमि को सिंचित करने वाले जलस्रोतों से जुड़ा हुआ है। यह वन क्षेत्र न केवल पर्यावरण के लिए बल्कि लाखों किसानों और ग्रामीणों के जीवनयापन के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है। 

हालांकि, इस क्षेत्र में खनन गतिविधियों के कारण पर्यावरण पर गहरा संकट मंडरा रहा है। खनन से हसदेव नदी और बांध के अस्तित्व पर खतरा उत्पन्न हो गया है, जो कि इस पूरे क्षेत्र की जल आपूर्ति का प्रमुख स्रोत है। ICFRE (इंडियन काउंसिल ऑफ फॉरेस्ट रिसर्च एंड एजुकेशन) और WII (वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया) ने अपनी रिपोर्टों में उल्लेख किया है कि खनन से होने वाले पर्यावरणीय प्रभाव अपरिवर्तनीय होंगे, और इससे क्षेत्र की पारिस्थितिकी पर गहरा असर पड़ेगा।

10 लाख जन याचिका का अभियान:

हसदेव अरण्य के संरक्षण हेतु स्थानीय समुदायों और पर्यावरणविदों ने 10 लाख जन याचिका तैयार करने का निर्णय लिया है, जिसे छत्तीसगढ़ विधानसभा में प्रस्तुत किया जाएगा। इस याचिका के माध्यम से प्रदेशव्यापी अभियान शुरू होगा, जिसका उद्देश्य राज्य सरकार पर दबाव बनाना और खनन गतिविधियों को रोकना है। 

इस अभियान के समर्थन में हसदेव बचाओ आंदोलन के साथी जांजगीर जिले के विधायकों से मिले और उनसे समर्थन की अपील की। जांजगीर-चाम्पा के विधायक ब्यास कश्यप और अकलतरा के विधायक राघवेंद्र सिंह ने हसदेव अरण्य में हो रहे विनाश पर चिंता व्यक्त की और कहा कि यह केवल पर्यावरण का सवाल नहीं है, बल्कि यह जांजगीर जिले की लाखों जनता की जीविका और भविष्य का भी सवाल है।  हसदेव बचाओ आंदोलन को लेकर की सार्थक चर्चा हुई ।

हसदेव अरण्य छत्तीसगढ़ के सरगुजा और कोरबा जिलों में फैला हुआ एक विशाल और जैव विविधता वाला वन क्षेत्र है। यह क्षेत्र स्थानीय आदिवासियों की आजीविका का आधार है, जहाँ वे सदियों से जल, जंगल और जमीन पर निर्भर हैं। यहाँ की हसदेव नदी इस पूरे क्षेत्र की जल आपूर्ति का प्रमुख स्रोत है, जिससे आसपास के जिलों की लाखों हेक्टेयर कृषि भूमि सिंचित होती है।

लेकिन हाल के वर्षों में, इस क्षेत्र में कोयला भंडारों के दोहन के लिए खनन परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है। अदानी समूह को इस क्षेत्र में खनन करने का अधिकार दिया गया है, जिससे स्थानीय आदिवासियों में गहरा आक्रोश पनप रहा है। उनका मानना है कि इस खनन से पर्यावरण को अपूरणीय क्षति होगी, और उनकी आजीविका पर भी सीधा असर पड़ेगा।

आदिवासियों ने इस मामले में अपने कानूनी अधिकारों की दुहाई दी है। “वन अधिकार अधिनियम” और PESA (पंचायती राज (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम) के तहत आदिवासियों को अपनी जमीन और संसाधनों पर स्वायत्तता प्राप्त है। किसी भी बाहरी परियोजना के लिए उनकी सहमति आवश्यक है, लेकिन उनके अनुसार, अदानी समूह के खनन परियोजनाओं के लिए उनकी सहमति नहीं ली गई।

हसदेव अरण्य बचाने के लिए चल रहे इस आदिवासी आंदोलन को व्यापक जन समर्थन प्राप्त हो रहा है। राज्यभर के पर्यावरणविद, सामाजिक कार्यकर्ता, और किसान संगठन भी इस आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल हो रहे हैं। साथ ही, इस आंदोलन को #SaveHasdeo के तहत सोशल मीडिया और जनसभाओं के माध्यम से राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिल रही है।10 लाख जन याचिका तैयार की जा रही है, जिसे विधानसभा में पेश किया जाएगा, ताकि सरकार पर दबाव बनाया जा सके और खनन परियोजनाओं को रोका जा सके।

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